मैं वो मिथिला कुमारी हूँ – कोमल अग्रवाल
मैं वो मिथिला कुमारी हूँ – कोमल अग्रवाल
नहीं अबला बिचारी हूँ न मैं विपदा की मारी हूँ,
मैं सीता हूँ अहिल्या हूँ मैं भारत की वो नारी हूँ ।।
है लक्ष्मी का जिगर मुझमे है पद्मा सा हुनर मुझमे,
मेरे बाबुल को प्यारी हूँ उसी बगिया की क्यारी हूँ।
कभी आया था खिलजी भी जिसे दर्पण दिखाने को,
न शरमाया दशानन भी उसे प्रिय से चुराने को।।
रिशिवर भी नहीं चूके उसे पाहन बनाने को,
न व्रत तोड़ा न सत छोड़ा मैं वो ममता की मारी हूँ।।
परीक्षा से नहीं डरती मैं वो मिथिला कुमारी हूँ।
पहन पायल मैं जब आती, सभी के दिल मे मुसकाती
मेरी चन्दा सी बिंदिया है मेरे प्रिय को अधिक भाति
बिछुआ के दर्प से ही सुहागन मैं हूँ कहलाती
करे श्रृंगार बासंती वही अम्बिया की दारी हूँ
सरलता की मैं मूरत हूँ तभी प्रीतम को प्यारी हूँ।
मैं सीता हूँ अहिल्या हूँ मैं भारत की वो नारी हूँ ।।
बहुत कोमल कली हूँ मैं कंटकों पर चली हूँ मैं,
बड़े नाजो पली हूँ मैं पिता की लाड़ली हूँ मैं।।
मेरा सम्मान लुटता है अकारण ही जली हूँ मैं,
हवा चंचल कंवारी हूँ मैं नींदों की खुमारी हूँ।।
ये अम्बर सर झुकाता है वही ऊंची अटारी हूँ।
मैं सीता हूँ अहिल्या हूँ मैं भारत की वो नारी हूँ।