मैं “लूनी” नही जो “रवि” का ताप न सह पाऊं
मैं “लूनी” नही जो “रवि” का ताप न सह पाऊं
और रेगिस्तान में समा जाऊँ।।
तुम्हें क्या लगा “बाँध” बनाकर बाँध लेगा मुझे
जरा सी मचल गयी तो सम्भाल लेगा मुझे
मैं खुद अपनी तलाश कर रही
तू क्या बांध लेगा मुझे
जाकर बाँधो से पूछो
मैं कभी अपनी धुन में भूल जाती हूँ
या कभी खुद को समझने के लिए दो पल रुक जाती हूँ
जो लगता है किसी ने बाँध लिया है मुझे
फिर मैं अपने रौद्र रूप में आती हूँ
बाँधो को दहलाती हूँ
और उफ़नते हुए आगे बढ़ जाती हूँ
Ruby