मैं रचनाकार नहीं हूं
“मैं रचनाकार नहीं हूं”
लिखती हूं कलम से कलमकार नहीं हूं
रचना तो मेरी है पर रचनाकार नहीं हूं
देखा है मैंने स्वप्न प्रभु आप संभालो
हो फिर से रामराज्य प्रभु मार्ग निकालो
सपनों में घूमती हूं मैं साकार नहीं हूं
रचना तो मेरी है पर रचनाकार नहीं हूं
यह द्वंद भाइयों में नहीं होना चाहिए
सब में ही हो प्रभु आप समझाइए
समता हूं मैं कोई आकार नहीं हूं
रचना तो मेरी है पर रचनाकार नहीं हूं
मैं रोशनी सी फिर रही हर नैन चुमके
शब्दों में गढ़ी भावना की ओढ़नी ओढ़े
समझो मुझे स्वरस हूं मैं प्रहार नहीं हूं
रचना तो मेरी है पर रचनाकार नहीं हूं
मैं छू सकूं कविता कि प्रभु एक भी सीढ़ी
क्षमता नहीं मुझ में प्रभु सामर्थ भी नहीं
यह गीत आपका मैं गीतकार नहीं हूं
रचना तो मेरी है पर रचनाकार नहीं हूं
मधु पाठक “मांझी”