मैं मैं नहिंन …हम हम कहिंन
देव भाषा में
अहम् का विस्तार
आवाम से चलकर वयम् तक ।
हिन्दी के “मैं” को चाहिये
उसकी जगह “हम” का प्रस्थापन
समावेसी संबोधन का हक ।
“मैं” के मायने क्या
आत्मा या शरीर ?
वाद-विवाद छोड़कर
हाड़-मास में रमी दस इन्द्रियों के साथ
मन, बुद्धि, जीव को समष्टि रूप दें “हम”
सुझायें सोचकर ।