” मैं “..”मेरा “..से अच्छा ..”हम”…”हमारा “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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ज्यों -ज्यों समय बीतता गया ..अनुभव का पिटारा खुलता गया ..क्या अच्छा है क्या बुरा है …..इसकी परख आसानी से होने लगी ! हम लिखने और बोलने में ” मैं “..और….. “मेरा “… का प्रयोग करने लगते हैं ! इनके प्रयोगों से तो हम बच नहीं सकते ….क्योंकि हमारे व्याकरण का यह अभिन्न शब्द है ..इसके प्रयोगों से हम बंचित नहीं रह सकते ! हिंदी बोलचाल के अंदाजों में अधिकांशतः ” मैं “…” मेरा ” ….का प्रयोग होता है !…परन्तु पता नहीं ..इस “मैं “……में हमें अहंकार की बू नज़र आने लगी है ! तानाशाही प्रवृति वाले लोगों को यह ‘वचन ‘ बहुत ही भाने लगा है !..”मैं वो हूँ ..मैं परिवर्तन लाना चाहता हूँ ….मेरे शासन में यह नहीं ..वो नहीं…. इत्यादि….इत्यादि “…कहना कुछ- कुछ कर्कश लगने लगता है ! …..” हम “…”हमारा “……हमें तो प्यारा लगता है ! …..अकेला चना भांड नहीं फोड़ सकता !….. ” मैं “……” मैं ” के प्रयोगों से लगता है जैसे नेपोलियन….जार …हिटलर ….मुसोल्लोनी का पुनर्जन्म फिर हो गया हो !…..हमारी लेखनी …हमारे विचार ..हमारे कमेंटों..और आभार व्यक्त को हम जब … “हम “…”हमारा ” से अलंकृत करते हैं तो उसके रूप ही निराले हो जाते हैं …हम इन्हीं राहों पर चलना चाहते हैं ..और हमारी कोशिश भी यही रहती है कि हम ” मैं “..”मेरा “….से किनारा बनाये रखें !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका