मैं मिलन गीत लिख-लिख के गाता रहा…
?विधा – गीत ? विषय – मिलन ?
?लय – स्वतन्त्र?
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अक्स दिल में बसा और लुभाता रहा।
एक तूफान सा आता – जाता रहा।
मेरे ख्वाबों – खयालों में थीं तुम ही तुम।
मैं मिलन-गीत लिख-लिख के गाता रहा।
इश्क़ नदिया के हम तुम किनारे हुए।
बन चकोरी-से चन्दा के प्यारे हुए।
इश्क़ की इन्तेहा हो गयी इस क़दर।
एक दूजे के दोनों सहारे हुए।
घाव दिल का ये मुझको सताता रहा।
मैं मिलन गीत लिख-लिख …..
दिल में जज़्बात का अब न रेला रहा।
जिंदगी में न यादों का मेला रहा।
तुम हुए दूर हमसे तो बरपा क़हर।
भीड़ में भी ये दिल तो अकेला रहा।
मेरे दिल को यही रंज खाता रहा।
मैं मिलन गीत लिख-लिख…..
तुम हो झरना तो जाओ नदी बन बहो।
इस महब्बत की मजबूरियां क्यों सहो।
दिल से अब भी निकलती है ये ही दुआ।
तुम जहां भी रहो प्यार से खुश रहो।
नाम होठों पे बस ये ही आता रहा।
मैं मिलन गीत लिख-लिख …..
हमको दीवानेपन का गुमां हो गया।
चाँद में तेरा चेहरा नुमां हो गया।
सुरमई साँझ में खिल गई चांदनी।
देख लो कितना क़ातिल समां हो गया।
तेज सुर में तुझे गुनगुनाता रहा।
मैं मिलन गीत लिख-लिख के गाता रहा।
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?तेज 20/04/17✍