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14 Jul 2024 · 1 min read

मैं मन के शोर को

मैं मन के शोर को
ठीक ठीक लिख नहीं पाता
आवाजें धागा नहीं होती
उलझी हुई आवाज़ों के सिरे
हाथ नहीं आते
और शोर बढ़ता जाता है
मन बहरा हो जाता है शोर से
कुछ सुनता नहीं
कुछ कहता नहीं
बाहर मैं चुप हूं
ना जाने शोर कब बंद हो जाए
ना जाने मन कब बोल उठे!!

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