मैं मजदूर हूं
मैं मजदूर हूं ,
रोज ख्वाहिशों के पुल बनाता हूं ,
कभी पत्थर तोड़ता हूं
तो कभी मलबा उठाता हूं ।
घाव मेरी हथेलियों पर और बात किस्मत की !
मैं मजदूर हूं ,
चूल्हा जले ना जले मगर
खा लेता हूं वजन में मन भर धूल ,
पी जाता हूं पसीना मेहनत की उमस में ,
ताप जीवन का और बात किस्मत की !
मैं मजदूर हूं ,
खपरैल का घर और मिट्टी से कसी दीवारें ,
तान रखी है धूप की चादर आंगन में ,
लेकिन टपकता है बरसात में छप्पर ,
उस पर ठंड पूस की और बात किस्मत की !
मैं मजदूर हूं ,
गलियारे मे कदम रखूं तो हंसते कंकड़
क्या चल पाएगा ? अंतर्मन का भार लिए ,
चप्पल घिसकर रोशनदान बन गई ,
छाले पांवों में और बात किस्मत की ।
मैं मजदूर हूं ,
कुर्ते की जेब में पैबंद लगाकर रखा है ,
उम्मीदों को गिरवी रखकर एक सपना ,
एक छत , दो रोटी , दो कपड़े , एक कफ़न
दो गज जमीन जुटाने में उम्र कम गई ,
फ़ाके में हम रहे और बात किस्मत की !
मैं मजदूर हूं ।
मंजू सागर
गाजियाबाद