मैं भटकता ही रहा दश्त ए शनासाई में
ग़ज़ल
मैं भटकता ही रहा दश्त-ए-शनासाई¹ में
कोई उतरा ही नहीं रूह की गहराई में
क्या मिलाया है बता जाम-ए-पज़ीराई² में
ख़ूब नश्शा है तेरी हौसला-अफ़जाई³ में
तेरी यादों की सुई, प्रेम का धागा मेरा
काम आये हैं बहुत ज़ख़्मों की तुरपाई में
डस रही है ये सियह-रात⁴ की नागिन मुझको
भर रही ज़हर-ए-ख़मोशी⁵, रग-ए-तन्हाई⁶ में
सुर्मा-ए-मक्र-ओ-फ़रेब⁷ आँखों में जब से है लगा
तब से है ख़ूब इज़ाफ़ा⁸ हद-ए-बीनाई⁹ में
फ़िक्र-ओ-फ़न¹⁰, रंग-ए-तग़ज़्ज़ुल¹¹, न ग़ज़ल की ख़ुशबू
बस लगा रहता हूँ मैं क़ाफ़िया-पैमाई¹² में
सीख पानी से हुनर काम ‘अनीस’ आएगा
दौड़ कर ख़ुद ही चला आता है गहराई में
– अनीस शाह ‘अनीस ‘
1.जान पहचान का जंगल 2.जाम-ए-पज़ीराई =स्वीकृति का जाम।
3.प्रोत्साहन।
4.काली रात
5.ख़ामोशी का ज़हर
6.अकेलेपन की नस
7.मक्कारी और धोखे का सुर्मा
8.बढ़ोत्तरी ,लाभ
9.देखने की सीमा
10. भाव और शिल्प
11.ग़ज़ल की सुंदरता का रंग।
12.तुकबंदी।