मैं बेटा हूँ
मैं बेटा वंश का दीपक खुशी घर घर में लाता हूँ।
लुटा सर्वस्व भी अपना, मैं रिश्तों को निभाता हूँ।।
कलेजे का मैं टुकड़ा हूँ, नयनतारा हूँ माता का।
पिता का गर्व साहस हौसला हूँ जग में भ्राता का।
बंधा इक डोर रक्षा की कसम हर इक उठाता हूँ।
मैं भाई हूँ , दुखों में हर बहन के काम आता हूँ।।
लुटा सर्वस्व भी अपना, मैं रिश्तों को निभाता हूँ।।
सिपाही बन खड़ा सरहद तिरंगा शान है मेरी।
वतन की आन के ख़ातिर जी हाजिर जान है मेरी।
छिड़ी हो जंग दुश्मन को क्षणों में ही हराता हूँ।
विजयश्री गर शहादत पे, तिरंगा ओढ़ जाता हूँ।
लुटा सर्वस्व भी अपना, मैं रिश्तों को निभाता हूँ।।
पिता दशरथ माँ कौशल्या मैं बेटा राम बन जाऊँ।
यशोदा-नन्द की गलियाँ सलोना श्याम बन जाऊँ।
मसीहा यीशु , गुरुनानक, खुदा-बंदे दिखाता हूँ।
अगर माँ-बाप बूढ़े, बन श्रवण कावड़ घुमाता हूँ।।
लुटा सर्वस्व भी अपना, मैं रिश्तों को निभाता हूँ।
मैं गुरु भी शिष्य भी मैं लक्ष्य भी मैं लक्ष्यभेदक भी।
त्रिलोकी के जगत का साध्य साधक भी मैं सेवक भी।
पतित-पावन पुराणों, वेद, ग्रंथों, का रचयिता हूँ।
प्रचारक ज्ञान का, विज्ञान से नव जग बनाता हूँ।।
लुटा सर्वस्व भी अपना, मैं रिश्तों को निभाता हूँ।।
शिवाजी हूँ महाराणा, मैं विक्रम हूँ अशोका भी।
भगत आज़ाद गांधीजी खुदी अशफ़ाकउल्ला भी।
विवेकानंद, मुनि-सागर, मैं संविधान ज्ञाता हूँ।
सभी धर्मों का रक्षक – दीप जग में जगमगाता हूँ।।
लुटा सर्वस्व भी अपना, मैं रिश्तों को निभाता हूँ।।
अगर नेता अटल हूँ तो अभिनेता अमित सा हूँ।
मिशाइलमेन अब्दुल तो खिलाड़ी मैं सचिन सा हूँ।
रफ़ी, दादा कभी पंकज से नगमे गुनगुनाता हूँ।
सज़ा संगीत सुर नौशाद मैं बर्मन कहाता हूँ।।
लुटा सर्वस्व भी अपना, मैं रिश्तों को निभाता हूँ।।
सुहागन का बनूँ श्रृंगार वचनों को निभा जाऊँ।
पिता का धर्म कन्यादान डोली भी सज़ा जाऊँ।
सुरक्षित पीढ़ियाँ हो बीज बनके गड़ भी जाता हूँ।
पथों की मुश्किलें को रौंद पथ आसाँ बनाता हूँ।।
लुटा सर्वस्व भी अपना, मैं रिश्तों को निभाता हूँ।।
अगर हूँ जेठ का सूखा तो बादल भी हूँ सावन का।
विरह की आग बासंती प्रिये मधुमास आँगन का।
मैं प्रियतम प्रेयसी के प्रीत में खुद को लुटाता हूँ।
मैं सुंदर स्वर्ग से प्यारा जहाँ में घर बनाता हूँ।।
लुटा सर्वस्व भी अपना, मैं रिश्तों को निभाता हूँ।।
संतोष बरमैया #जय