मैं नारी हूँ-पुस्तक समीक्षा
नारी को वंदन इसलिए किया जाता है, क्योंकि नारी जगजननी है। संत-महापुरुषों को जन्म देने वाली नारी है, वीरों को देश पर कुर्बान करने वाली नारी है और प्रसिद्ध कहावत के अनुसार प्रत्येक इनसान को सफलता की मंजिल तक पहुँचाने वाली भी नारी ही है। नारी के बिना घर सूना और नारी के बिना जग सूना है। इसी कड़ी में नारी के अनेक स्वरूपों से रूबरू करवाया है, कवि एवं समीक्षक डॉ. प्रदीप कुमार ‘दीप’ ने अपनी काव्य-कृति के जरिए जिसका शीर्षक भी नारी पर ही आधारित है
उक्त पुस्तक को कवि ने कुल पाँच भागों में विभाजित करते हुए चौंसठ कविताओं की रचना की है, जिसमें सुख-दु:ख, मान-अभिमान, कर्तव्य-स्वभाव, सृजन-वरदान, अबला-सबला, बेटी, बहन, पत्नी एवं अन्य रिश्तों को दृष्टांत स्वरूप दर्शाया है। प्रथम भाग में ‘नारी-वन्दन’ को प्रस्तुत करते हुए डॉ. प्रदीप कुमार ‘दीप’ ने सरस्वती-वन्दन से शुरू कर भगिनी-वन्दन पर समाप्ति की है। आगे चलकर ‘नारी-स्पंदन’ में ‘मैं शक्ति हूँ’ से ‘कल्याणी’ तक की गाथा में सौलह कविताओं को संजोया है।
भाग तीसरे में लेखक ने ‘नारी स्कंदन’ में ‘मर्यादा’ से लेकर ‘बंवडर’ तक कुल आठ कविताओं की रचना की है, कड़ी को आगे बढ़ाते हुए भाग चौथे में ‘नारी-क्रन्दन’ में ‘नारी व्यथा’ से लेकर ‘ऐसा कब तक होने देंगे?’ तक कुल पन्द्रह कविताएँ हैं तथा अन्तिम पाँचवें भाग ‘नारी-दृष्टांत’ में ‘लक्ष्मीबाई’ से लेकर ‘किस डगर’ तक पन्द्रह कविताओं का समावेश है। इसी प्रकार पुस्तक ‘मैं नारी हूँ’ नारी जीवन की सम्पूर्ण गाथा बेहद आकर्षक बन पड़ी है, जिसे जितना पढ़ा जाए, शायद उतना ही कम है।
मनोज अरोड़ा
लेखक, सम्पादक एवं समीक्षक
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