” मैं तो बस मनुहार करूँ हूँ ” !!
नख शिख तक श्रंगार करूँ हूँ !
जी भर तुझको प्यार करूँ हूँ !!
चाँद सलोना घर उतरा तो ,
महक उठी घर की फुलवारी !
तुझको पाना एक तपस्या ,
मैंने सारी खुशियाँ वारी !!
रूठ अगर तू जाये है तो ,
मैं तो बस मनुहार करूँ हूँ !!
बेटे से बढ़कर माना है ,
तुझ पर मुझे गुमान बहुत है !
अंतरिक्ष छूएगी एक दिन ,
पाले यों अरमान बहुत हैं !
एक एक कर लक्ष्य तू छू ले ,
जीवन भर सत्कार करूँ हूँ !!
अन्तस् में जो नेह छिपा है ,
आँखों से छलका करता है !
अभिलाषा हो तेरी पूरी ,
अश्रु यों ही ढलका करता है !
निष्ठुर जग से तुझे बचाना ,
सोच सोच कर यही डरूँ हूँ !!
तुझमें जो विश्वास जगा है ,
वही मुझे संतोष दिलाता !
ईश्वर की तू अनुपम कृति है ,
सोच सोच कर मन भर आता !
तुझमें ही बस सब पा जाऊँ ,
लख लख यही प्रयास करूँ हूँ !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )