मैं चोर नहीं।
बाल कहानी –मैं चोर नहीं
वह एक छोटा सा गाँव था। कभी खूबसूरत और हलचलयुक्त रहा होगा,ऐसा आभास गाँव के सूने पड़े घर,मकान औसारे देते हैं। छोटे-मोटे जीविकोपार्जन के साधन के साथ रोज की जरुरतें पूरी करने वाली छोटी दुकानें,परचूनी की दुकान,सब्जी वाले की छोटी सी रेहड़ी,नाई,मोची …तो कुछेक प्रोवीजनल स्टोर जैसी दुकानें भी थीं।
कच्ची सड़क पर एक ढाबा भी था जहाँ कुछ सरकारी कर्मचारी आकर उदर की भूख मिटाते थे। एक सरकारी मिडिल स्कूल भी था। छोटा सा सरकारी अस्पताल भी था जहाँ छोटी मोटी बीमारियों का इलाज हो जाया करता था।सड़क के नाम पर कच्ची रोड और पगडंडियाँ थीं।
इसी गाँव में राजू भी रहता था। शांत,गँभीर स्वभाव वाला राजू पाँचवी कक्षा में पढ़ता था। विगत वर्ष फैली महामारी में उसके माता-पिता दोनों ही चल बसे ।तब लोकलाज की खातिर चाचा-चाची ने अपने साथ रख लिया। उनके स्वयं के दो बेटे एक बेटी थी। चाचा खेतों में काम करते थे। जब काम न होता तो मजदूरी भी कर लिया करते थे। राजू के माँबाप के गुजर जाने के बाद उनकी परचूनी की दुकान और घर पर चाचा चाची का कब्जा सहज ही हो गया था।
कुछ महीने लोक लाज की खातिर चाची ने राजू को सँभाला ।फिर धीरे धीरे उससे घर के काम करवाने लगीं।
राजू की उम्र का उनका बेटा रामू निहायत ही बदमाश था। गाँव में छोटी मोटी चोरियाँ करता , कभी किसी की दुकान से पैसे चुराये तो कभी ढाबे से कचौरी पकौड़ी। आये दिन लड़ाई-झगड़ों के कारण स्कूल से उसे निकाल दिया गया था ।
अब राजू के घर पर रहने से उसकी बदमाशियाँ बढ़ गयीं। चोरी कर के राजू का नाम लगाना उसका प्रिय खेल हो गया था।
स्कूल जाने से पहले राजू घर की साफ सफाई करता ।कभी कभी रात का बचा उसे खाने को दिया जाता ।स्कूल से आकर घर के झूठे बर्तन व छोटे भाई बहनों को सँभालना उसकी जिम्मेदारी होती। चाची ने पढाई छुड़वाने के लिए उसे दुकान पर भेजना भी शुरु कर दिया था।
राजू चुपचाप सब करता और कभी आधे पेट कभी भूखे रह कर सो जाया करता।
कुछ माह बाद चाची को राजू का खाना ,पीना महँगा लगने लगा और वह उसे बाहर निकालने की जुगत लगाने लगी।
जब जब राजू दुकान पर बैठता ,रामू आकर जबरन बिक्री के पैसे निकाल ले जाता।चाचा हिसाब माँगते तो वह सब सच बता देता ।रामू की एक दो बार पिटाई होने से चाची खार खाये बैठी थीं।
एक बार राजू के दुकान पर जाते वक्त रामू पैसे ले गया और राजू के बस्ते में छिपा दिये। चाचा के हिसाब पूछने पर राजू कुछ कहता उससे पहले ही रामू और चाची उसका बस्ता लेकर आ गये।
“लो जी,..मोर रमुआ को भौत बदनाम कर रखो है जबकि चोर तो यो राजू है। मैयो बाप तो चले गये मोर छाती पे जे सँपोला छोड़ गये।”चाची जोर जोर से चिल्लाने लगी। चाचा हतप्रभ थे कि आखिर यह हो क्या रहा है। भतीजे से अभी थोड़ा लगाव बाकी था अतः पत्नी को डाँटते बोले ,”जे का बकर बकर लगा रक्खी है तैंने?शर्म न आवत तोका।”
चाची तो आँगन में फैल गयी
“इत्ते दिनन ते जे रजुआ चोरी करत रहो .और मोर छोरे को नाम लगा के वाये पिटवात रहो ।जाको नाश होय।अब तो न रखूँगी जाय अपने पास..।”
“बेकार की बात मत कर …राजू भौत ही सीधो लरिका है।काहे बाये दोष दे रही।अपनो दाम खोटो है जे न सूझत तोय?” पिता की डपट सुन रामू के होश उड़ गये पर चाची ने झपट के राजू का बस्ता आँगन में उलटा करते हुये कहा ..”लेओ,कर लेओ तसल्ली अपनी। सीधे में हीं तो दो लक्षण जादा होत हैं।अब तो न रहन दूँगी जाय अपने घर में..।”चाची ने मौके पर चौका लगाते हुये एक जोर की धोल राजू की पीठ पर जमा दी। राजू बेचारा वैसा ही सहमा हुआ था इस वार को सह न सका और रो पड़ा।
“चाचा ,मैंने पैसे नहीं लिए।भगवान की कसम।”
चाचा को कुछ कहने का मौका दिये बिना ही चाची ने उसके बस्ते में किताबें ठूँस उसे आँगन से बाहर फेंका और साथ में राजू को भी पीट कर घर से बाहर कर दरवाजा लगा लिया।
भूखा प्यासा राजू दरवाजा खटखटाते हुये रोता रहा पर दरवाजा न खुला।
आखिर हताश हो अपना बस्ता उठा वह कच्ची सड़क की ओर चल दिया। ढाबे को देखकर पेट भूख से तडप उठा।ढाबे के बाहर चुपचाप आँसू बहाता बैठा रहा।
ढाबे के मालिक रामदीन काका ने उसे देखा तो बोले ,”बचवा,आज इतैं कैसे आय गयो तूँ। जा घर जा…रात होन वाली है।”राजू की आँख से आँसू बह निकले
रामदीन काका ने पूछा क्या बात है ..पर राजू कुछ बोल न पाया बस काका को आँसू भरी नज़रों से देखता रहा। तब तक ढाबे पर कुछ ग्राहक आ गये तो काका वहाँ व्यस्त हो गये।
शाम गहराने लगी थी।काका का ध्यान राजू से हट चुका था। जब ढाबा बंद करने का समय हुआ तो काका की नजर बस्ता छाती से लगाये जमीन पर सिकुड़े पड़े राजू पर पड़ी।
वह जल्दी से राजू के पास गये …”बेटा..उठ बचुआ..।”जैसे ही उन्होंने राजू को छुआ तो देखा कि उसका बदन बुखार से तप रहा था। उन्होंने जल्दी से ढाबे की गुल्लक से रुपये निकाले और ढाबा बंद कर राजू को गोद में उठाया तथा ढाबे पे काम करने वाले लड़के से साथ चलने को कहा ।
राजू को लेकर वह चाचा चाची के घर पहुँचे।
दरवाजा खुलबा कर राजू के बुखार में ढाबे के आगे पड़े होने की बात कही।पर चाची ने राजू पर चोरी करने का इल्ज़ाम लगा कर घर रखने से मना कर दिया।
“पर बहू,ई का तो बहुतै जोर का ताप चढ़ो है …।”
मेरी बला से मर जाये ..हमें का ।”कहते हुये चाची ने काका के मुँह पर दरवाजा बंद कर दिया।
“हे राम , कैसे कैसे लोग हैं जा धरती पे। जाके घर पे कब्जा कर के बैठी है वही घर से बेघर । बसेसर को गुजरे ज्यादा टैम न भयो …का दुर्गति कर दयी छोरा की।”रामदीन काका के आँसू छलक आये। वह राजू को लेकर गाँव के सरकारी अस्पताल में पहुँचे।डाक्टर ने जांच कर के बताया कि एक सौ तीन बुखार है और कमजोरी भी है।उन्होंने एक इंजेक्शन लगाया तथा कुछ दवायें देकर कहा कि थोड़ी देर में होश आ जाएगा तब घर ले जाइयेगा।और दूध पिला कर कुछ हल्का सा खिला दीजिएगा।
रामदीन ने साथ वाले लड़के को अपने घर भेज कर बेटे को बुलवाया।
कुछ देर में राजू को होश आने लगा..
“चाचा…मैं चोर नहीं….मैंने पैसे नहीं चुराये……चाची ..मत मारो…।”रामदीन ने राजू को बुदबुदाते सुना तो उन्होंने उसके मुँह के पास कान ले जाकर सुना।
फिर जाकर डाक्टर को बताया कि बच्चे को होश आ रहा है ।
डाक्टर ने आकर देखा …..”बुखार अभी भी है ।चाहो तो रात को यहीं रहने दो।या फिर घर भी ले सकते हो।”
तब तक रामदीन काका का बड़ा बेटा भी आ गया । वह राजू को पहिचान गया। उस के बेटे के साथ ही तो पढ़ता था राजू। एक दो बार स्कूल में भी देखा था।
पिता से सब जानकारी ले डाक्टर से बात की।फिर राजू को अस्पताल से घर ले आये। राजू अभी भी पूरी तरह होश में नहीं था ।।जरा सा होश आता ,बस यही बुदबुदाता ,”मैं चोर नहीं,मुझे मत मारो।”
अर्ध बेहोशी की अवस्था में ही काका ने गर्म हल्दी वाला दूध पिलाया ।फिर दवा खिला कर अच्छे से कंबल ओढ़ा कर सुला दिया। स्वयं भी वहीं उसके पास सोगये।
सुबह राजू का बुखार उतर गया पर कमजोरी भी थी।
रामदीन ने अपने बेटे से बात की। बेटे ने राजू से प्यार से बात कर सब पूछा। राजू ने सिसकते हुये सब बताया तब बेटे ने राजू की पीठ पर पिटाई के निशान देखे।
दोनों ने जाकर पुलिस थाने में चाचा चाची के खिलाफ बच्चे को मार पीट कर घर से निकालने की रपट लिखाई। साथ ही राजू को अपनी कस्टडी में रखने की इजाजत भी ले ली।
पुलिस ने चाचा चाची की तहकीकात की ,आस पड़ोस के बयान लिए।और फिर राजू के पिता की दुकान से राजू की पढ़ाई का खर्चा हर माह देने की लिखापढ़ी करवा कर उन्हें सख्त चेतावनी देकर छोड़ दिया।
संदेश –सच की राह पर चलने वाले का साथ ईश्वर भी देते हैं।
मनोरमा जैन पाखी
मेहगाँव ,जिला भिण्ड
मध्य प्रदेश