मैं खुश थी
मिट्टी का कच्चा घर बनाकर ही खुश थी,
कागज की कश्ती चलाकर ही खुश थी।
कहाँ आ गयी इस समझदारी के दौर में,
गुड्डे गुड़ियों की शादी रचाकर ही खुश थी।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
मिट्टी का कच्चा घर बनाकर ही खुश थी,
कागज की कश्ती चलाकर ही खुश थी।
कहाँ आ गयी इस समझदारी के दौर में,
गुड्डे गुड़ियों की शादी रचाकर ही खुश थी।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत