मैं केवल आज में जीता हूं
मैं केवल आज मैं जीता हूं
मेरे सुधी पाठक यदि आज तुमने इस पेज का आद्योपांत पठन किया तो इस निष्कर्ष पर स्वयं पहुंच जाओगे कि जीवन दर्शन को समझने के लिए काल अथवा समय स्थान आदि बाधक नहीं होते हैं और ना ही उसके लिए राम कृष्ण अथवा बुध के युग में जन्म लेने की आवश्यकता है यह दर्शन हर समय हमारे आसपास है बस उसे समझने की दृष्टि होनी चाहिए ।
उस दिन शाम के झुरमुट में मैं किसी मोड़ पर खड़े रिक्शेवाले को तय करने के लिए उन्मुख हुआ वह उस समय अपनी बीड़ी सुलगाने जा रहा था उसने सशर्त मुझसे तय किया कि पहले वह सुट्टा मार लेगा फिर चलेगा मैं सहमत हो गया । उसपर दृष्टिपात करते हुए मुझे लगा कि यह अधेड़ दुबला व्यक्ति श्वास रोग से ग्रसित था और तभी वह बड़ी फूंक कर ज़ोर ज़ोर से खांसने लगा । मैं धैर्य पूर्वक खड़ा हो कर इंतज़ार कर रहा था वह इस बात से निश्चिंत था कि उसका ग्राहक भाग जाएगा । ( डॉक्टर होता तो आधी चाय छोड़कर भी लग जाता ) मेरे धैर्य की सीमा समाप्त होने लगी थी तभी उसने मुझे खांसते हुए सीट पर बैठने का इशारा किया और चलने को तत्पर हुआ , मैं उसके रिक्शे पर बैठते हुए बोला
‘ तुम बीड़ी पीते हो मत पिया करो कितना खांस रहे हो ‘
वह बोला
‘ मेरा भाई बीड़ी नहीं पीता था उसे गले का कैंसर हो गया एक दिन एम्स में जाकर मर गया । फिर कुछ ठहर कर रिक्शा चलाते हुए बोला मैं सुल्फा भी पीता हूं ‘
मैंने कहा ‘क्यों ‘
वह
‘अरे जितना ज्ञान तुम्हें ऐसे हैं उससे अधिक तो मुझे सुल्फा पीने के बाद खुद ही आ जाता है ।’
मुझे लगा कि हम मन में जीवन दर्शन ज्ञान को समझने में जीवन भर असफलता से लगे रहते हैं पर संतुष्ट नहीं हो पाते पर उसे उस दर्शन ज्ञान को समझ पाने का जो परम संतुष्टि का भाव उसके पास था उससे मुझे ईर्ष्या होने लगी ।
मैंने पूछा
‘ कैसे पीते हो ‘
वह बोला ‘कभी भी पास में राम गंगा के किनारे एक शिव मंदिर है उसी के चबूतरे पर हम चार-पांच लोग बैठते हैं कभी शाम को तो कभी तारों की छांव में ₹ 30 – 35 का सुल्फा फिर उसके बाद बूंदी के लड्डू ….’
मैंने कहा
‘ देखो मैं डॉक्टर हूं , भगवान ना करे तुम्हें कभी कोई परेशानी हो इतना खांसते हो तो जहां से मुझे बैठाया था पास में ही मेरा अस्पताल है आ जाना ।
वह बोला
‘ आप मेरी चिंता मत करो डॉक्टर साहब मेरे रिक्शे पर अक्सर बीमार रोगी सवारियां बैठ जाती हैं और मुझे किसी डॉक्टर के पास ले जाने के लिए कहती हैं मैं उन्हें आपके पास ले आऊंगा ‘
उसके फलसफे से प्रभवित हो कर मैंने पूंछा
‘तुम दिन भर क्या करते हो ? ‘ वह बोला
‘सुबह 4:00 बजे उठ जाता हूं नहा धोकर मन्दिर में शिव दर्शन करके नाश्ता कर फिर रिक्शा पकड़ कर दिनभर सड़कों पर और रात को जब घर पहुंचता हूं तो मेरी बहू – लड़के की पत्नी ताजा आटा गूंध कर मेरे लिए रोटी बनाती है और मैं सारी दिन भर की कमाई उसे दे देता हूं ‘
मैं – तुम्हारी पत्नी ?
वह – बीमार थी मर गयी ।
अब अपने इस शास्त्रार्थ में उसे हराने के दृष्टिकोण से एवम अपनी अहमतुष्टि हेतु मैंने कहा
‘ अगले दिन के लिए कुछ पैसे बचाते नहीं हो कभी कल की ज़रूरत के लिए ‘
वह बोला –
‘मैं केवल आज मैं जीता हूं ‘
एक रिक्शेवाले से ऐसी महापुरुषों की वाणी सुन कर मैं आश्चर्यचकित हो कर सोचने लगा इस रिक्शेवाले की इस बात को भगवान बुद्ध ने भी कहा और बड़े बड़े ज्ञानी भी कहकर चले गए की जो है वर्तमान है , हम वर्तमान में जीना सीखें हमारा वर्तमान ही भूत होगा और हमारे वर्तमान पर ही भविष्य टिका है जितना हम भूतकाल में जीने लगते हैं उतना ही बूढ़े होते जाते है । मैंने इन बातों को सुना था लेकिन वह इस सिद्धान्त को जी रहा था उसकी जीवनशैली में यह बात समाहित थी ।