“मैं और मेरी मौत”
“मैं और मेरी मौत”
मैं और मेरी मौत, जैसे दो अजनबी,
कभी सामना नहीं हुआ, पर हमेशा करीबी।
वो छुपी है परछाइयों में, मैं जीता हूँ उजालों में,
वो है एक सच, और मैं हूँ सपनों की डालों में।।
पुष्पराज फूलदास अनंत
“मैं और मेरी मौत”
मैं और मेरी मौत, जैसे दो अजनबी,
कभी सामना नहीं हुआ, पर हमेशा करीबी।
वो छुपी है परछाइयों में, मैं जीता हूँ उजालों में,
वो है एक सच, और मैं हूँ सपनों की डालों में।।
पुष्पराज फूलदास अनंत