मैं और मेरा मन
अधिकांशतः जब पुरुष कमाता है तो वह अपने साथ परिवार के शौक भी पूरा करता है , परन्तु अधिकांश महिला जब कमाती है तो पहले अपना शौक पूरा करती हैं । और वह इसे स्वतंत्रता कहती हैं ,जबकि यह स्वतंत्रता निकृष्ट प्रकृति का था , जिसमे केवल अपने शौक है , और समाज को इससे कोई लाभ नही ।
परन्तु महिला और पुरुष की मानसिकता ने पुरुषवादी और महिलावादी को जन्म दिया ,जो बिल्कुल अपने मालिकाना हक को बताना है कि हम किसी से कम नही ।
जबकि एक महिला ,एक पुरुष के बिना , और एक पुरूष एक महिला के बिना अधूरा है ,क्योकि दोनों की पूर्ति-एक दूसरे से ही है फिर दजारेसी ( झगड़ा) क्यो ? मिल कर काम करते हैं ना !!
खैर दोनों नासमझी के इस दौर में ऐसे बहके है की बहुत बिजी हैं , जरा जरा सी बातों पर भगवान को याद कर लेते हैं , मोक्ष का रुख कर लेते हैं , और एक दूसरे से लड़ बैठते हैं , की ब्रेकअप !
समय भले गोल जैसा बदल रहा हो ,परन्तु समझौता प्रकृति का नियम है और कोई एक समान नही है सब मे विविधता और विशेषता है । बस हमे एक दूसरे को समझना होगा कि समय तेज नही भाग रहा है बल्कि हम तेज भाग रहे हैं । बस बस जल्दी से पीछा छूटे ।
मैं घड़ी नही पहनता क्योकि मेरे पास औरो से बात करने के लिए , कुछ लिखने और पढ़ाने के लिए बहुत सारा समय है ,लेकिन जब मैं घड़ी पहनता हूँ तब मैं भी औरो की तरह कहता हूँ बस 10 मिंट बात करेंगे , 5 मिंट खाना ,3 मिंट इधर उधर करेंगे फिर अपना काम करेंगे । लेकिन यह मुझे अपनो से और मेरे चाहने वालो से दूर करता है और मैं होना नही चाहता तो मैं घड़ी नही पहनता । लेकिन यह मानसिकता आधुनिक युग के लोगो को नॉनसेंस लगे ।।
खैर वक्त के दहलीज पर बहुत कुछ देखना है हमे , शायद कोई हमसे रूठ जाए ,या कोई मान जाये ,यह तो हमारे जिंदादिली पर निर्भर रहता है । जो मुझे पसन्द नही करते हैं वह कहते हैं मैं बहुत पकाता हूँ ,और बहुत ज्ञानी बनता है , बोलने का ढंग नही है , और जो मुझे पसन्द करते हैं वे कहते बहुत खूब खूब । लेकिन मुझे नही फर्क पड़ता कि लोग क्या कहते हैं , लेकिन फर्क तब पड़ता है जब कोई दिल के करीब इंसान कदर ना करे और अपने जिद पर टिका रहे ,जबकि उसके जिद की बुनियाद कच्ची हो ,लेकिन वो मेरे लिए प्यारा है इसलिए उसकी हर बात मेरे लिए सहनीय है ।
खैर इंसान को एक वक्त बाद उन लोगो को छोड़ते चले जाना चाहिए ,जो हमारे दिल के बुनियाद को न समझते हो , खैर ऐसा करना मुश्किल होगा ,क्योकि दिल के रगों में बसा इंसान एक झटके में कैसे निकलेगा , बार बार नजरअंदाज करने के बावजूद सडा सा मुहँ लेकर पुनः आ जाना ये बताता है कि कितना प्यार है ,लेकिन एक कहावत है जंगल में मोर नाचा ,लेकिन तुमने नही देखा । अर्थात बार बार आना लेकिन उसे रत्ती भर आपके प्यार की प्रवाह न होना ,की मेला बाबू थाना थाया । हा हा ….
हर दिन सभी का दिन होता है कोई सरकारी नॉकरी में रो रहा है ,कोई उसके लिए रो रहा है ,बात अलग है लेकिन उद्देश्य सिर्फ एक ही है वह भी केवल सुख प्राप्त करना है । असल में मानव जीवन पूर्ण रूप से सुख पर टिका हुआ ।और उसी सुख को प्राप्त करने के लिए मनुष्य हमेशा प्रयासरत रहता है ,उसी के कारण बीच बिच में दुख आ जाता है तो रो लेता है , जब फिर सुख आता है तो खुसिया मानता है । ताव से बियर ,दारू , धन को बांटना सब कुछ करता है । लेकिन यह भूल जाता है कि सुख का एक हिस्सा दुख से जन्मा है और दुख का एक हिस्सा सुख से जन्मा है ,यानी सुख आया है तो दुख आएगा ही । और दुख आया है तो सुख आएगा ही । परन्तु इंसान तमाम प्रकार के कार्यो में सलंग्न रहता है जिसे वह भौतिक संसार कहता है , और आगे चलकर विद्वान कहते हैं सब माया है जबकि ऐसा कुछ नही था। सब ऐसा क्यो हो रहा है नही पता ,लेकिन ऐसी कोई शक्ति है जो मनुष्य के माया को बांधी है और मनुष्य उसी शक्ति के नियमो के अनुरूप स्वयं को ढाला हुआ । और वह शक्ति शायद समाज है क्योकि हमारे जन्म के समय से हमे वह सभी ताम झाम सिखया जा रहा है जो समाज के लिए उपयुक्त है न कि हमारे स्वयं के लिए । हमारे लिए उपयुक्त होना और उसका मिल जाना उसे समाज हमारी सफलता कहता है लेकिन फ़िर भी सफलता के बावजूद समाज मे रहना है , समाज ही हमे धर्म ,जाति ,लिंग , भेदभाव करना सब कुछ सिखाती है , अलग से हम कुछ नही करते हैं जैसे हम हिन्दू है इसका निर्धारण हिन्दू के घर मे जन्म से हुआ , जाति कौन सी वह भी उस घर से ही पता चलता है जो किसी ना किसी समाज से जुड़ाहै ,कोई भी कानूनी नीतियां, कोई भी कानूनी तौर तरीके समाज को ध्यान में रख कर ही बनाये जाते हैं , तो समाज ही वह सबसे बड़ी ताकत है जो मनुष्य को निर्धारित करती है कि वह क्या है ,क्यो है ,कैसे है । सिमोना द बोअर की पुस्तक द सेकंड सेक्स की एक प्रसिद्ध पंक्ति है’ स्त्री पैदा नही होती ,उसे बनाया जाता है ,और पुरुष भी नही पैदा होता ,उसे बनाया जाता है ।’ अर्थात पुरुष और स्त्री का बनना समाज ही तय करता है कि वह कौन है ।खैर मैं इंसान के इंजीनियर, डॉक्टर के बनने की बात नही कर रहा ,क्योकि उनका यह बनना व्यगतिगत मामला है ,लेकिन अंत मे वह समाज के लिए ही कार्य करेंगे ।
खैर जिंदगी में कोई वसूल नही ,कोई सिद्धान्त नही ,बल्कि मजा है हर दम मुस्कुराना एक कला है , किसी के प्रति आसक्त न होकर अनासक्त होना था । लेकिन सत्य कब तक छुपता ।, क्योकि सत्य यही था ,’ महिला लाख कोशिस कर ले , पुरुष के बिना वह कुछ नही है । उसे अंत मे पुरुष के साथ मिलकर ही कार्य करना होगा , उसे अपनी वासना की भूख पुरुष से ही मिटानी होगी , क्योकि स्त्री के सौंदर्य का जलवा तभी तक जब तक लोग उसे पसन्द करते हैं ,जिस दिन लोग देखना बंद कर देंगे तो वह सौंदर्य और श्रृंगार सिर्फ एक कोरा कागज होगा जिसका कोई मतलब नही । , स्त्री भले आज आत्मनिर्भर है लेकिन कहि ना कहि पुरुषवादी का इसमें भी अपना स्वार्थ नजर आता है ।जैसे कुछ गेंहू में घुन पीस जाए तो गलत नही है वैसे ही समाज मे कुछ महिला आगे बढ़ जाये तो पुरुष वर्ग को कोई नुकसान नही । की समाज में एक संदेश जाए कि पुरुष और महिला दोनों समान है । लेकिन महिला भी कम होशियार नही है , सम्रद्ध होने के बाद वह स्वयं के महिला वर्ग को ध्यान नही देती हैं ,क्योकि उसमें भी यह स्वार्थ छुपा रहता है कि पुरुष वर्ग का साथ देने से हमारा वर्चस्व बना रहेगा ।
खैर यह सब उलूल जुलुल बाते थी , इसका किसी भी वर्ग से कोई सरोकार नही । सब अपने मे मस्त थे , और रहना भी चाहिए ,क्योकि जब जरूरत होगी तो सब ताम झाम है उसे
फिर से अपनाया जाएगा ।
~मैं और मेरा मन ❤️