” जी लो यारों
कुछ कहने का, कुछ सुनने का,कुछ करने का वक्त न अब तुम ढूंढो यारों
कठपुतली का खेल है जग ये,कब गिरकर फिर उठ न सकेंगे अनुमान नहीं है इसका यारों
हर लम्हे में खुशी तलाशो,मत करो प्रतीक्षा अगले पल की
वो हाथ कभी न आयेगा यारों
साकार करो अपने सपनों को, स्वछंद उड़ान भरो तुम यारों
न करो ज्वलंत चिंगारी नफरत की, प्रेम -सागर में हिचकोले लो यारों
सारे गिले-शिकवे मिटाकर,नवसृजन करो रिश्तों का यारों
सूरज की प्रथम किरण पर ईश नमन करो तुम प्यारो
जिसने इक दिन और दिखाया, धन्यवाद उसको दो यारों
नवदिवस पर नवचेतना से नवस्फूर्ति भरो तुम यारों
खुशियां बांटों सबको कुछ ऐसी,, रहे उल्लास चहूं ओर ऐ यारों
पता नहीं आगे के क्षण का,”कल हो न हो यारों”
कामिनी खुराना