मैं एक महाकाव्य बनना चाहूंगी
*मैं एक किस्सा नहीं, एक महाकाव्य बनना चाहूँगी
बातें बड़ी ही सही,परन्तु सागर की स्याही,
कलम मैं खुद बनना चाहूँगी *
*आयी हूँ दुनियां में
तो कुछ करके जाऊंगी
सुंदर तरानों के कुछ गीत
सुहाने छोड़ जाऊंगीं *
*यूं ही नहीं चली जाऊंगीं
परस्पर प्रेम के रंगों से
यह जहां सजाऊंगी
कुछ मीठे जज्बातों से
हर दिल में घर बनाऊंगी*
कोई याद ना करे फिर भी
याद आऊंगीं, क्योंकि अपने
तरानों के कुछ अमिट निशान
छोड़ जाऊंगी *
*अपने लिये तो सब जिया करते हैं
मैं कुछ – कुछ दुनियां के लिये भी जीना चाहूँगी
मैं किस्सा नहीं एक उपन्यास बनना चाहूँगी
मैं मेरे जाने के बाद भी, अपने शब्दों मे जीना चाहूँगी *