मैं अपने बिस्तर पर
मैं अपने बिस्तर पर
अपनी नींद,
तकिये पर
अपने ख़्वाब
छोड़ आई हूँ,
अपने सींचे पौधों में
खुशियाँ अपनी,
अपने काढ़े मेज़पोश में
हुनर मेरा,
अपनी पहचान
वहीं किताबों की अलमारी पर धर के,
आँगन के झूले में
सारी हँसी-हिलोर ,
अम्मा के संग बातें अपनी
वहीं रसोई में,
चर्चे-बहस सभी
बाबा की कुर्सी पर ,
और छोड़ आई हूँ
बैठक में
अपनी यादों की तन्हाई
जहाँ बैठकर कभी
सखियों के संग
बिताये थे कुछ जीवित क्षण,
छत पे क्या छोड़ा है
नहीं बता सकती
जब-जब होती होगी पूरनमासी,,
चाँद ढूँढता होगा,,,
मुझे मुंडेरों पर!!!!!