मैंने
फिर मैंने आवाज लगाई है अना की धज्जियाँ उड़ा के
फिर से इख़लास-ए-मोहब्बत को तो मैंने तनहा देखा
कोई आया तो चुप शहर के सीने पे बस मुझे ही बोलता देखेगा
बड़ी देर से खुद को मैंने रेजा रेजा ख्वाब को ही जोड़ते देखा
~ सिद्धार्थ
फिर मैंने आवाज लगाई है अना की धज्जियाँ उड़ा के
फिर से इख़लास-ए-मोहब्बत को तो मैंने तनहा देखा
कोई आया तो चुप शहर के सीने पे बस मुझे ही बोलता देखेगा
बड़ी देर से खुद को मैंने रेजा रेजा ख्वाब को ही जोड़ते देखा
~ सिद्धार्थ