मैंने ऐसे स्वर्ण महलों में आना जाना छोड़ दिया,
समझ सके ना जो दिल मेरा उसे समझना छोड़ दिया,
छिपा-छिपा के अपने आंसू अब मुस्काना छोड़ दिया,
जज्बो का जहां मोल नहीं हो, रिश्तों के कोई कद्र नहीं हो,
मैंने ऐसे स्वर्ण महलों में आना-जाना जाना छोड़ दिया।
✍🏻रेनुका चौहान ✍🏻
कुशीनगर