मेहनत
देखो आज फिर मेरी मेहनत रंग लाई हैं
कलम ने रोशनाई कागज पर बिखराई है
अल्फ़ाज़ कुछ उभर कर आ रहे हैं देखिये
फिर से मैंने देखो जगह तीस में पाई है
कोशिश रहेगी हमेशा फिर से बाहर ना हो जाऊं
अभी एक से तीस के बीच लंबी खाई है
तीस डंडो की ये सीढ़ी है उतार भी है चढ़ाव भी
सीढ़ी ना छूटे कभी भी ये तमन्ना जगाई है
आपका प्यार और स्नेह गर यूँ ही मिलता रहा
चढ़ जाऊंगा उतरते संभलते ये जो चढ़ाई है
वीर कुमार जैन
06 जुलाई 2021