मेरे हृदय में तुम
मेरे हदय में तुम
मेरी हर साँस में नित
इक मधुर संगीत
आनंद अपरिचित
नसों में रूधिर बन
अविरल सा बहता
प्रेम शीतल मृदुल
गूँजता उर में इक
कर्णप्रिय वो संगीत
आलोक कोई तिमिर
को बिखेर देता दूर
निंद्रा के सूने निलय
में स्वर्ण स्वप्न सा बन
मधुरिमा सा अलक्षित
मृग मरीचिका मन
करता अनुसरण
संग मधुर स्मृतियाँ
इक स्नेहिल गमन।।