मेरे हृदय ने पूछा तुम कौन हो ?
मेरे हृदय ने पूछा तुम कौन हो ?
जवाब दो क्यूं मौन हो ?
मैंने कहा “ मैं धागा हूं ” जो मोतियों को बांधता है ”
धागा आधार है मगर नाम मोतियों का होता है ।
वह मुझ पर मुस्कुराया , कुछ इतराया और बोला ,
“ माला तो मोतियों से बनती है ”
फिर तुम्हारा वजूद ,तुम्हारा अस्तित्व क्या है ?
मैं उलझी रही , सोचती रही , “ मैं धागा हूं ”
जो सब मोतियों को पिरोकर रखता है ,
माला मुझसे ही तो बंधी है ,
वरना ये मोती बिखर गए होते ,
कुछ इधर तो कुछ उधर गए होते ।
फिर भी मैं क्यूं नहीं हूं किसी के शब्दों में ,
इस उलझे हुए किरदार को लेकर , मैं फिर से उलझकर रह गई ,
इस धागेनुमा जिंदगी में ,
क्योंकि मैं धागा हूं , सिर्फ जोड़ने के लिए ,
अगर गांठ पड़ जाए तो तोड़ने के लिए ।
मंजू सागर
गाजियाबाद