मेरे हिस्से का दुःख
मेरे हिस्से का दुःख था और कहां जाता //
आना ही था उसको फिर कैसे न आता //
सोचा था सुख सारे दुनिया के हर लूंगा //
सोचा ये था दुःख सारे सबके हर लूंगा //
पर हिस्से थे सबके अलग दुखों के //
पर किस्से थे सबके अलग सुखों के //
जो न था अपने हिस्से का कैसे मैं पाता //
मेरे हिस्से का दुःख था और कहां जाता //
अशोक सोनी ।