मेरे शहर बयाना में भाती भाती के लोग है
मेरे शहर बयाना में भाती भाती के लोग है
जात के नाम पर चौड़ दिखाते “कुछ” ऐसे हरामखोर है
एक ओर करते equality की बात
और दूसरी ओर करते जातपात
हमे रोकते
हमे टोकते
हमे नोचते
हमे तोलते
हमे बार बार जातीसूचक शब्द बोलते
ना सोचते , कि हमरा भी इतिहास में है किस्सा
हम भी तो इसी दुनिया का है हिस्सा
कैसे कोई बड़े कुल में जन्म लेने से बन जाता है – श्रेष्ठ
छोटे कुल में जन्म लेने से हम क्यों कहलाते है – अश्रेष्ठ
अगर है ऐसा
मिटा दो गीता में लिखी बातो को
” इंसान कर्म से श्रेष्ठ बनता है जन्म से नही ”
अगर है ऐसा
तो जला दो “रामायण ” को , क्यों कि लिखने वाला निच्च कुल में जनमा था
अगर है ऐसा
तो निकल फेको बाबा साहेब ही तस्बीरों को
क्यों कि वो भी दलित थे
अगर है ऐसा
तो भूला दो झलकारी बाई के बलिदान को
हे भगवन क्या कभी मिटेगा ये जगलराज़
या कभी खत्म ना होगा भेदभाव
कभी खत्म ना होगा जातिबाद।।
The dk poetry