मेरे मन का सीजन थोड़े बदला है
बदल गया है साल, ठीक है! क्या करना!
मेरे मन का सीजन थोड़े बदला है ।
वृक्षों के पत्ते बदले हैं, तने नहीं।
शाखों के तेवर बदले हैं, जड़े नहीं।
सूरज पथ से भटक गया है। मालूम है!
समय सांझ में अटक गया है। मालूम है!
बदल चुकी ग्रह चाल ठीक है! क्या करना!
मेरे मन का मौसम थोड़े बदला है।
दीवारों पर नया रंग तो, खिला नहीं।
नया कलेवर अभी छतों को, मिला नहीं।
खिड़की ने घूंघट बदला है, मालूम है।
दरवाजों ने पट बदला है, मालूम है।
बदला घर का हाल, ठीक है! क्या करना !
मेरे मन का आंगन थोड़े बदला है।
पांव स्वप्न की चौखट तक भी, गया नहीं।
किसी नींव ने अभी, कंगूरा छुआ नहीं।
छोर समय का छूट रहा है। मालूम है!
जुड़ने से, कुछ टूट रहा है। मालूम है!
श्वेत पड़े कुछ बाल, ठीक है! क्या करना!
मेरे मन का रोगन थोड़े बदला है।
© शिवा अवस्थी