मेरे मन का एक खाली कोना -2
मेरे मन का एक खाली कोना
Part -2
कुछ देर रिद्धि के रो लेने के बाद, आंटी ने उसे वही पलंग पर लेटा, खुद भी उसके पास लेट गयी, और उसके सर पर हाथ फेर सहलाने लगी। उसके मासूम से चेहरे से आंसूओ को बहता देख उनकी भी आँखे नम हो चली थी, वो समझ सकती थी रिद्धि का दर्द। आखिर एक स्त्री ही स्त्री का दुख दर्द समझ सकती है, और वो भी खास उस स्त्री का जिसने अपने पति को भरी जवानी में खो दिया हो,और साथ देने के लिए कोई परिवार भी ना हो।
उन्हें भी याद आया जब उन्होंने अपने घर वालों के खिलाफ जाकर अपने ही कॉलेज के लड़के से शादी की थी। और शादी के कुछ सालो बाद ही एक कार एक्सीडेंट में उनके पति और बच्चे की मौत हो गयी थी। तब से आज तक खुद को कितना संभाला है उन्होंने खुद को, अपनी छोटी सी बच्ची के लिए, वरना उन्होंने तो कभी की हार मान ली थी।
सच ही है, ज़िंदगी गुजरने के लिए कोई वजह तो होनी ही चाहिए , जिसके सहारे, दिन, महीने, साल गुजारे जा सके।
अचानक से रिद्धि के खांसने से, आंटी अपने अतीत से बाहर आयी। उन्होंने देखा तो रिद्धि उनसे लिपट कर सो चुकी थी। आंटी ने दीवार घड़ी पर नजर डाली तो देखा रात के ढाई बज चुके है, और ना रिद्धि ने कुछ खाया ना उन्होंने।
एक पल के लिए सोचा की रिद्धि को उठा दे, फिर एक पल को लगा की उसे सोने ही दे, वरना यादों को रोक पाना मुश्किल होता है, और रिद्धि अभी अभी उन पलों से सामना कर के सोयी है। वह भी लाइट बंद कर वही सो गयी, जहाँ रिद्धि और आंटी की पंद्रह साल की लड़की दीक्षा सोई हुई थी। जो आंटी के जीने की वजह थी।
सुबह दूध वाले की आवाज से रिद्धि की नींद खुली, उसने देखा की वह कल रात आंटी से पास ही सोई हुई है। अपने आप को ठीक क़र वह दूध लेने चली गयी।
आज रविवार का दिन था तो, उसे कोई जल्दी भी नहीं थी, उसने किचन में दूध रख झाड़ू लगाने लगी, और सोचा इतने आंटी भी जाग़ जाएगी, फिर हर रविवार की तरह साथ में चाय पीयेगी, पर उसने झाड़ू भी निकाल लिए, और छोटे मोटे काम भी निपटा दिए, पर आंटी नहीं उठी, रिद्धि ने आंटी को आवाज़ दी, और उनके पास चली गयी. पर आंटी नहीं उठी, रिद्धि ने उनके हाथ को पकड़ क़र आवाज़ लगाने को हुई की देखा तो आंटी के हाथ बहुत गरम थे, और उनके चेहरे पर पसीना ही पसीना हो रहा था, और उन्हें काफ़ी तेज बुखार था, रिद्धि ने उनके चेहरे से पसीना साफ किया तो, आंटी की आंख खुल गयी और उठकर बैठने लगी , की रिद्धि ने उन्हें रोका और कहने लगी,
आप आराम कीजिये आंटी आपको बहुत तेज बुखार है, रुको में दवाई लेकर आती हूं, रिद्धि अलमारी की तरफ जाने को हुई की आंटी ने उसे रोकते हुए कहा, रहने दो रिद्धि दवाई नहीं है खत्म हो गयी कल रात ही मैने देखा था।
रिद्धि को अपने आप में शर्मिंदगी होने लगी, सोचने लगी की सब उसकी वजह से हुआ है, कल देर रात तक उसके रोने पर आंटी उसे सहलाती रही, और मुझे सुलाकार ही वे खुद जाग ती रही।
“कभी-कभी ना हम इंसान बहुत मतलबी हो जाते है, हम समझ ही नहीं पाते की कौन अपना है और कौन पराया। हम हमेशा अपने लिए सोचते है, अपने मतलब की बात करते है। पर हमें सोचना समझना चाहिए, परिस्थियों में साथ देने वालों को, उनके प्रति, अपने कर्तव्यों को निभाना चाहिए, तभी हम अपने और अपनेपन को महसूस कर पायेंगे।”
रिद्धि किचन से चाय बनाकर लेकर आयी, पर साथ ही साथ वह कल रात के लिए अफसोस भी करती रही।
दोनों ने चाय खत्म की, रिद्धि खाली कप को हाथ में लेकर आंटी को बोली, आंटी हम अभी दस मिनट में डॉक्टर के पास जाने वाले है,आंटी कुछ कहती कि रिद्धि इतना कहकर किचन में चली गयी। और किचन से आकर आंटी को चलने को कहा, पर आंटी के मना करने पर रिद्धि उनसे जिद करने लगी, और उन्हें राजी कर लिया, रिद्धि ने अभी तक सोई आंटी की लड़की दीक्षा को उठाया और, आंटी को तैयार होकर आने का कहकर अपने रूम में चली गयी।
कुछ देर बाद रिद्धि उन्हें अपने स्कूटी से हॉस्पिटल ले गयी।आज रविवार होने के कारण रिद्धि आज पूरे दिन आंटी के साथ ही रही, वही उसने खाना बनाया, आंटी को खाना खिलाकर दवाई दी,और आराम करने को कहा। और खुद भी वही उनके पास बैठ गयी, जब तक की उनकी आँख न लग गयी।
रिद्धि आंटी को देख सोचने लगी, की जब वो यहाँ नहीं आई थी तब, कौन उनका ख्याल रखता होगा, वो कैसे सब काम करती होगी। उसे एक बार फिर से सवालों ने घेर लिया था। और सोचती रही, उनकी जगह खुद को रखकर, आखिर दोनों की स्थति कुछ एक जैसी ही तो थी। इस उम्र में भी आंटी ने खुद को कितना अच्छे से संभाले हुए है, यह देख उसे भी हिम्मत आने लगी, की वो भी जिंदगी की इस जंग से लड़ेगी, और उसके पेट में पल रहे बच्चे को एक बेहतर जिंदगी देगी, वो एक मजबूत माँ होने का कर्तव्य निभाएगी।
अचानक आंटी के खासने से आवाज़ आई तो वह उनके लिए पानी लेने चली गयी, घड़ी की और नज़र डाली तो पाँच बज गये थे,यह उसके पार्क में जाने का टाइम होता था, जहाँ वो पार्क में खेलते बच्चों को देखा करती जिससे उसे काफी सुकून मिलता, और कुछ हिम्मत बंध जाती।
पर आज उसे पार्क जाना ठीक नहीं समझा ,उसने पानी का गिलास आंटी को दिया, और वापस वही उनके सिरहाने बैठ गयी ।आंटी जानती थी की यह उसके पार्क जाने का टाइम है, उन्होंने रिद्धि से बोला रिद्धि बैटा आज पार्क नहीं गयी, रिद्धि ने ऐसे ही कह दिया मन नहीं है जाने का, इसीलिए नहीं गयी। यह कहकर रिद्धि ने आंटी को चाय के लिए पूछ कर बात पलट दी।और चाय बनाने किचन में चली गयी।
अब आगे की कहानी part- 3 में