मेरे मन का एक खाली कोना -1
मेरे मन का एक खाली कोना
Part -1
इतनी भीड़ होते हुए भी दुनिया में, अकेला पन सा लगता है, मानो बहुत कुछ छुपा हुआ है मन के भीतर , जो बाहर आने को बेताब है , पर मन की बातें कहा हर किसी को बताई जा सकती है, इसीलिए दबी रहती है मन के किसी कोने में जहां दबी हुई बातों के सिवा कोई नहीं रहता है। जैसे मेरे मन का अब वो कोना रह गया है।
रिद्धि अपने इस किराये के कमरे की बालकनी से आने जाने वालो को देख कर सोच रही थी, रिद्धि 2 साल पहले ही अपने गांव को छोड़कर इस अजनबी शहर आ गई थी सॉरी छोड़कर नहीं आयी थी वो, उसे अपने ही घर वालो ने घर से निकल दिया था, और नहीं ससुराल वालों ने इस रिश्ते को अपनाया, क्योंकि उसने अपने घर वालों के मना करने पर भी अपने ही गांव के एक फौजी से शादी कर ली थी, वो भी उस परिवार के लड़के से जिसके पिताजी और रिद्धि के पिताजी की सालो पहले की कोई पुरानी रंजिश थी।
इसिलाए दोनों परिवार वालों ने अपनाने से इनकार कर दिया, तब से रिद्धि इस अजनबी शहर में एक प्राइवेट जॉब के सहारे अकेली रहती है, अजनबी शहर, हाँ अजनबी शहर,यह शहर अजनबी नहीं था पहले ज़ब तक उसका पति वेदांत उसके साथ था,6 महीने पहले ही एक आतंकवादी हमले में वो शहीद हो गया। तभी से यह शहर उसके लिए अजनबी हो गया ,
अब कोई भी तो नहीं है उसका इस शहर में ना उसका गांव में जो उसकी बातें सुन सके, अपना वक्त उसके साथ बिता सके।
अब किसी प्राइवेट insurance कम्पनी में जॉब के सहारे अपना समय बिता रही है।
रिश्ते भी अजीब होते है ना,
निभाते निभाते कब किसी गलती पर टूट जाते है ,
की उन्हें फिर जोड़ा नहीं जा सकता,
क्या इन्हे जोड़ने का कोई तरीका नहीं ?
सच है! रिश्ते बहुत नाजुक होते है।
रिद्धि का सोचना भी स्वाभाविक है हम प्राइवेट जॉब वालो के पास दिन भर की दफ्तर की थकान के बाद खुद के लिए टाइम ही कहा मिलता है, की कुछ खुद के लिए सोच सके,रिद्धि ऑफिस से आने के बाद कुछ देर बालकनी में आकर बैठ जाती थी कॉफ़ी के सिप के साथ वह कुछ सोचने को होती जिसमे भी अनगिनत विचार की बाढ़ आ जाती है। जिन विचारों से मन को तकलीफ होती है वही विचार खलबली मचा जाते है ।
रिद्धि अब ज्यादा किसी से बात नहीं करती और बात भी क्या करें ज़ब उसकी सुनने और समझने वाला ही अब इस दुनिया में नहीं रहा ।
जब आपको सुनने समझने वाला ही कोई न हो तब सच में जीने का मन नहीं करता बेरंग सी लगती है जिंदगी फिर, कई बार रिद्धि के मन में मरने के विचार आते लेकिन जब भी वह ऐसा कोई मन बनाती , उसके पति वेदांत की तस्वीर उसे और मजबूत बनाकर जीने का हौसला दे जाती, और उसकी कही बात याद आती , वेदांत उससे कहा करता था I
जब भी वह अपनी ड्यूटी के लिए जाता था , वेदांत कहता रिद्धि तुम्हे जीना है मेरे लिए और आने वाले कल के लिए जो तुम्हरे पास है, मेरे सफर तुम्हारे साथ कब तक है यह में भी नहीं जनता, हा पर इतना जरूर जनता हु की, में तुम्हारे पास हमेशा रहूँगा, तुम एक वीर की पत्नी हो, इन आँखों में सिर्फ गर्व के आंसू होने चाहिए।
इतना कह कर वो चला जाता, और वो उसे देर तक घर से दूर जाते देखा करती। वीर की पत्नी होना भी कोई कम बात नहीं है, वीरो की पत्नियों में हिम्मत होती है, आत्मविश्वाश होता है, गर्व होता है सब्र होता है।
रिद्धि ने उसे कभी रोते हुए विदा नहीं किया, पर जब कभी भी उसका मन भर आ आजाता है, वह कुछ पल उसकी तस्वीर के सामने बैठ रो लेती है और उससे कुछ बातें कर लेती है।
आज भी रिद्धि को वेदांत की बहुत याद आ रही थी, वह बालकनी से अपने कमरे में गयी और उसकी तस्वीर से लिपट कर आंसू बहाने लगी, आखिर कब तक वह अपने आंसुओ को छुपा कर रखती ,
जब यादो के सहारे जिंदगी काटनी पड़े तो, आंसुओं का बांध एक ना एक दिन फूट ही जाता है।
कुछ देर हुई ही थी की मकान मालिकन की आवज से वह जागी।
रिद्धि, रिद्धि बेटा,
रिद्धि ने अपने आंसूओ को साफ कर हलकी सी आवाज़ में कहा आई आंटी। रिद्धि ने अपने आप को ठीक कर दरवाजा खोला, रिद्धि कुछ बोलती उससे पहले ही आंटी ने पूछ लिया, क्या हुआ रिद्धि बेटा सब ठीक तो हे ना, बहुत देर से तेरे रोने की सिसकियां सुनाई दे रही थी तो चली आयी। रिद्धि ने कहा हा सब ठीक है आंटी , तू रो क्यूँ रही है वेदांत की याद आ रही है ना।
कुछ लोग अपने न होते हुए भी
दिल की बात समझ जाते है।
सच है ”
स्नेह का भाव खून के रिश्ते नहीं देखता..।
जब से वेदांत और रिद्धि शादी करके शहर आये थे , इन आंटी ने ही तो उन्हें सहारा दिया था, अपने घर से दूर होते हुए भी उन्हें कभी पराया महसूस नहीं होने दिया, हर मुश्किल समय में उन्होंने हमेशा उसका साथ दिया था ।
और उनका भी यहाँ कौन था, वह भी तो अपनी जिंदगी अकेले ही बीता रही थी, पति की एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी और बेटा, सब कुछ छोड़कर विदेश, बस एक छोटी बेटी है जिसके साथ उनकी जिंदगी चल रही है, फिर में क्यूँ कभी कभी हिम्मत हार जाती हु, रिद्धि खुद से यह कहकर आंटी के गले लगकर रोने लगी।
और तब तक रोती रही जब तक की उसकी सिसकियाँ कम न हो गई,
आंटी समझ सकती थी उसका दर्द, वो जानती किसी की यादों के सहारे जिंदगी काटना कितना मुश्किल होता है। आंटी उसे अपने साथ अपने कमरे पर ले गयी, और उसके आंसुओ को पोंछते हुए, उसे सहलाने लगी।
पर उन्होने उसे चुप होने के लिए नहीं कहा , शायद इसीलिए की मन को हल्का होने के लिए इन आंसुओ को बाहर आना जरुरी है ।
अब आगे……….part 2 मैं