मेरे भी सपने थे साथी ___ गीत
मेरे भी सपने थे साथी किसी का साथ मिल जाता।
साथ मिल जाता मुझे मैं मंजिल अपनी भी पाता ।।
मेरे भी सपने थे साथी किसी का साथ मिल जाता।।
(१)
बीता बचपन खेल खेल में समझ नहीं कोई इतनी थी।
जैसे तैसे शिक्षा थी पाई घर में निर्धनता कितनी थी।।
धीरे धीरे बड़ी उमरिया डिग्रिया बहुत ही पाई थी।
मेरे सच्चे जीवन की तो सारी यही कमाई थी।।
दफ्तर दफ्तर कांटे चक्कर सबको इन्हें बताता।
निराश होकर लौटना पड़ता कोई ना काम दिलवाता।।
मेरे ही भी सपने थे साथी किसी का साथ मिल जाता।।
(२)
घर गृहस्ती का बोझ पड़ा तो पढ़ाई अगली छूट गई।
शिक्षा मेरी काम ना आई किस्मत भी तो रूठ गई।।
जैसे तैसे करूं गुजारा बदल गया अब सारा नजारा।
पूंजीवाद की दौड़ में यारो मेरा अपना सपना हारा।।
भाव यही है “अनुनय “मेरे किसी को मैं न सताता।
देना है अब जो वही तो देगा है जो सबका दाता।
मेरे भी थे सपने थे साथी किसी का साथ मिल जाता।।
राजेश व्यास अनुनय