मेरे दोहे
मेरे दोहे
मानस बहुत उदास तब,जब होते हो दूर।
जब रहते हो पास में,सकल कष्ट काफूर।।
होता खुश है मन बहुत,तुम्हीं एक हो आस।
बिन तेरे ऐसा लगे,शून्य दिखे अहसास।।
तुझसे प्यारी जिंदगी,तुम्हीं गमकते फ़ूल।
मस्ती में यौवन रहे,सबकुछ हो अनुकूल।।
तुझसा कोई है नहीं,जिसपर हो विश्वास।
तुम अनुपम गंभीर हो,किंतु हास -परिहास।।
राह जोहता नित्य मन,हो बस तुझसे भेंट।।
मिलकर करते क्लेश सब,इस जीवन से मेट।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।