मेरी हर शय बात करती है
मेरी हर शय बात करती है
ये जो सारी चीजें हैं मेरे कमरें की
मैं इन्हें बेजा़ और मेरी समझता था,
पर देखो कैसे तुमसे मिलते ही सब तुम्हारी तरफ हो गये
इनमें से तो कुछ ने तो मेरे हाथ पैर पकड़ लिया है
और इस कुर्सी ने तो जैसे मुझे जकड़ लिया है
देखो! आप किसी पर यकीन मत करना
ये सब झूठी बात बतायेंगे
यहां वहां के झूठे किस्से सुनाएंगे
कैलेंडर कहेगा – –
मैं महीनों उसी तारीख पर अटका रहता हूं,
जिस तारीख आप दोनों ने एक साथ चाय पी थी,
और वो बेसिन कहेगा – –
कि अक्सर मैंने इसकी आंखों में नमी देखी है
जब यह सिंक में प्लेट रख कर मेरे पास हाथ धोने आता है,
और धीरे से कहता है “शैतान लड़की”
और डायरी – –
वह तो कहेगी कि मुझे कुछ कहना ही नहीं है
सब कुछ तो लिखा है, आप खुद पढ़ लो, पर आप पढ़ना मत इसकी बातों में फंसना मत, ये तो बस कुछ भी कहते रहते हैं,
और घड़ी से तो आप बात तक मत करना
वो कहेगी कि मेरे होने का बस इतना मतलब है
कि सुबह शाम और रात बता देती हूँ, बाकी तो यह किसी का नाम जपता रहता है, और दिवारों से बातें करता रहता है, चाहे तो दिवारों से पूछ लो…
दिवारों, छत, और फर्श की तरफ आप देखना भी मत, मैं जानता हूँ कि ये सभी आप से क्या कहेंगे,
कहेंगे कि जैसे हम छः लोग चार दिवारें, छत और फर्श हैं, यह भी हमारा हिस्सा लगता है.. कोई अधूरा किस्सा लगता है, जो रहता यहाँ है, पर रहता कहीं और है, पर हां वहां उस दिवार पर किसी का नाम लिख रखा है। खुद से और उस दिवार से ना जाने क्या क्या बात करता रहता है,
और वो कुर्सी कहेगी कि – न जाने कितनी शाम हम दोनों ने बैठे-बैठे तुमसे बात करते हुए गुजार दी। मैं थक जाती हूँ और यह मेज पर सो जाता है, फिर नींद खुलती हैं तो बिस्तर लगाता है। चाहे तो तकिये से पूछ लो.. बिस्तर से पूछ लो – – –
यह सब झूठ बोल रहे हैं, ऐसा कुछ नहीं करता मैं।
पर रहने दो अब आप तकिए से मत पूछने लग जाना मैं जानता हूं वह भी झूठ ही कहेगा,
वह कहेगा, “मैं ज्यादातर भीग ही जाता हूँ, कभी इसके आंसुओं से तो कभी इसकी कहानी/प्यार/और गम सुन कर अपने आंसुओं से। अच्छा है कि आँसू बेरंग होते हैं, वरना यह मेरा रंग जो तुम्हें दिख रहा है, कब का उसी रंग का हो गया होता जिस रंग के आंसू। मैं क्या-क्या बताऊँ इसके बारे में। हम तो बोल भी नहीं सकते वरना इसके हक में गवाही देते। और शायद इसे इसकी इबादत मिल जाती। हमें तो अब दिन भी याद नहीं कि ना जाने कितनी रातें एक नाम जपते हुए, शिसकिओं में इसकी रातें गुजर गइ होगीं। और कितनी दफे हमें “आप” मान कर हमें सीने से लगाए शिसकिओं के साथ सुबह हो गइ होगी। अब यह कहेगा कि हम सब झूठ बोल रहे हैं।
पर सबको पता है कि कौन सच बोल रहा है।
आप किसी का यकीन मत करो सब झूठ बोल रहे है
मैं ऐसा कुछ नहीं करता आप तो जानते हो मुझे..