मेरी लाज है तेरे हाथ
जीवन एक खुली किताब
सा छुपे नहीं हैं कोई राज
जो भी चाहे देखे औ पढ़े
नहीं कभी कोई एतराज
जिस समाज में भी रहते
रखें उनके मान का ध्यान
नहीं कहीं कदाचित किया
मानवीयता का अपमान
पुरखों के आदर्शों का भी
रखा पूरे दिल से ख्याल
ताकि भावी पीढ़ी को न
हो हमसे कोई भी मलाल
प्रभु श्रीराम को मानते रहे
जीवन का सतत अवलंब
उनकी कृपा से दूर हुईं सब
बाधाएं, बढ़ते गए कदम
दयानिधि से विनती सतत
करता रहता दिन और रात
अपनी कृपा बनाए रखना
प्रभु, मेरी लाज है तेरे हाथ