मेरी रातों की नींद क्यों चुराते हो
पता नही तुम याद क्यो आते हो,
मेरी रातों की नींद क्यों चुराते हो।
सोती नही हूं रात में तब तक मैं,
जब तक मेरे पास नही आते हो।।
जब जब फूलो को सूंघा मैने,
तुम्हारी ही खुश्बू उनमें आई।
उनको गजरे में लगाया मैने,
बस तुम्हारी याद मुझे आई।।
जब जब कभी बादल ने बूंदे,
मेरे तन और मन में बरसाई।
मिली जो तन मन को ठंडक,
बस तुम्हारी याद मुझे आई।।
जब जब पुरवा हवा है चली,
मेरे तन को वह छूकर चली।
दिया था संदेशा उसने मुझे,
सुनकर तुम्हारी ही याद आई।।
जब जब तन्हा मै कभी होती,
तुम्हारी यादें मुझे है घेर लेती।
खोकर तुम्हारी यादों में मैने,
तुम्हारी ही अनुभूति मैने पाई।।
पता नही ये सब कुछ क्यों होता,
तुम्हारा चेहरा सामने क्यो होता।
जानकर भी अनजान मै क्यू हूं,
शायद ऐसे में ये सब कुछ होता।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम