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31 Jul 2017 · 1 min read

मेरी माशुका

मेरी माशुका सिर से पैर तक
चलता फिरता काव्य
उसके हर एक शब्द
लबों से निकल कर रूह को हैं छु देने वाली
प्रेम और समर्पण की धारा
देहरी के दीपक से होड़ लगा
सुमेलित भक्ति और वीर रस का सूरा पान कराती सी
और अश्रु धारा क्या किसी रोद्र रूप से कम ।

मेरी माशुका सिर से पैर तक
चलता फिरता काव्य
हवा मे लहराती जुल्फे
असरार कोई , नव छटा बिखेरती साज़ कोई
सूरज सी लालिमा बेखरती मुस्कान समझो
छंद वही , राग वही , कवि का आलाप वही ।

मेरी माशुका सिर से पैर तक
चलता फिरता काव्य
जर्रा जर्रा महकते गुलाब सी महक दे तो समझों
शक्त शब्दों की मधुशाला , अर्थो की बलिवेदी वही ।

मेरी माशुका सिर से पैर तक
चलता फिरता काव्य
सोलह श्रृंगार मानो या ना मानो
ख्याली बूँद बन सिहरन पैदा करते तराने से ।

Language: Hindi
276 Views
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