मेरी माँ !!
देवी और सज्जनों आप सभी को मेरा नमस्कार , आप सभी का अभार प्रकट करते हुए मैं अभिनन्दन करता हूँ । मेरे प्यारे दोस्तो! आज मैं कुछ पल के लिए एकान्त मे बैठा था, न जाने क्यों मेरा मन बचपन के कुछ क्षणों मे चला गया और मेरे जहन मे न जाने क्यों एक अजीब सी पीड़ा और एक दर्द सा उठा और मुझे मेरी माँ का याद आ गया। बचपन के दिन कितने अच्छे थें,जब हम खुलकर रोया करते थें, अपने सारे गमो और दुखो को अपने माँ से रो-रो कर बताया करते थें। विद्यालय से जब चार बजें छुट्टी होती थी, तो अपने नन्हें कदमों को तेजी से भगाते हुए सिर्फ घर पहुँचने कि एक आश होती थी। घर जैसे ही पहुँचता था, देखता कि माँ पहले से इन्तजार मे घर की डेहराचे पर बैठी थी। माँ तुरन्त कन्धों से बस्ते को उतारती, विद्यालय के कपड़े को बदलती, हाथ-पाव मुँह धुलाकर भोजन कि थाली सजाकर परोसती और बिना भूख के दो रोटी जबर्दस्ती खिलाती फिर बोलती जावो अब खेलो। हम अपने हम उम्र के बच्चों के साथ खेलने चले जाते थे, उधर सूरज असताचल के तरफ गतिमान हैं,धीरे-धीरे शाम होने लगती, इधर माँ घर के दिया-बत्ती की तैयारी करती, हमारे पढ़ने के लिए लालटेन की काँच को साफ करती, उसमें तेल भरती। फिर माँ एक कड़क स्वर मे बोलती तुम्हे पढ़ना नही है क्या? फिर हाथ-पैर धुला कर सात बजें पढ़ने के लिए बैठा दिया जाता तो रात नौ बजें तक पढ़ते थें। फिर भोजन करने के बाद सोने के तैयारी होती। अपना मिट्टी का घर था, जो किसी ताजमहल से कम नहीं था, घर मे एक ही तख्ता था जो हमेशा राज सिंहासन जैसा सजा रहता था। माँ के साथ गोदी मे लिपट कर सोना, रात मे घर के आँगन मे चमकते तारो को देखना, चाँद को देखकर मुस्कुराना , आकाश मे टिमटिमाती उड़तीं हुए वायुवान को गिनना, बगल मे बजती हुए रेडियो से संगीत सुनना, हवाओं का मन्द-मन्द बहना, माँ से जिद्द करके राजा-रानी, वीर-आदर्शों, महापुरुषों कि कहानियाँ सुनना, प्रशन पूछना उसके बाद माँ से लिपट कर जीवन के सुखमय सपने मे डूब कर सो जाना। क्या राते थी वो, क्या बातें थीं वो? सुबह-सुबह उठकर कोयल के मीठे स्वर को दोहराना उसे परेशान करना बड़ा अच्छा लगता था। विद्यालय जाते समय माँ की आँचल को पकड़कर लटकजाना और माँ से कहना! आज माँ तेरी बहुत याद आ रही हैं,आज मैं पढ़ने नहीं जाउंगा, माँ कठोर बनकर डाट-फटकार पढ़ने के लिए भेज देती थी, कभी-कभी माँ ,माँ कि ममता मे फसकर रोक लेती थी। हर दुख मे माँ ढाल बनकर खड़ी हो जाती थी, जरा सा भी चोट लगता माँ की एक फूक ही मरहम बनजाती थी। कही से भी आता माँ कुछ खाने वाली चीज देती थी, खुद ना खाकर हमारे लिए खाने वाली चीज रख देती थी। बहुत ही संघर्षों से माँ ने हमें बड़ा किया।
मेरे प्यारे दोस्तो ! त्याग का नाम ही माँ है, ईश्वर हर जगह नहीं रह सकता इसलिए उसने माँ बनाया । मैं मनुष्यत काया मे होते हुए भी माँ का वर्णन करने मे असमर्थ हूँ । अगर मैं सम्पूर्ण पृथ्वी को कागज बना लूं , समस्त वृक्ष को कलम बना लूं और समस्त समुद्र के जल को स्याही बना लूं , हे ! माँ फिर भी मैं आपका वर्णन करने मे असमर्थ हूँ । हे ईश्वर ! अगर मैने जीवन मे सत्-कर्म किये तो, अगर मुझे पुन: मानव शरीर मिले तो, मुझे उस माँ की गोदी मे ही डालना। हे माँ! मैं तेरा हर जन्म मे बेटा बनूँ यहीं मेरी कामना हैं। इस पृथ्वी की समस्त माँताओ को मेरा नमन।
हे माँ !
-शुभम इन्द्र प्रकाश पाण्डेय
ग्राम व पोस्ट -कुकुआर, पट्टी , प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश