मेरी भावों में डूबी ग़ज़ल आप हैं
मेरी भावों में डूबी ग़ज़ल आप हैं
मेरे जीवन का हर एक पल आप हैं
मैं तो कुछ भी नहीं हूँ बिना आपके
आज भी आप हैं मेरा कल आप हैं
इतने खामोश हैं जैसे लब हों सिले
किन ख़यालों में गुम आजकल आप हैं
जिसकी ख़ुशबू से रहती हूँ मैं तरबतर
दिल में खिलता हुआ वो कमल आप हैं
हर क़सम है निभायी सदा आपने
अपनी हर बात पर ही अटल आप हैं
अश्रु ख़ुशियों के हैं क्यों बहा दूँ भला
है जो आँखों में ठहरा वो जल आप हैं
अब मैं तारीफ़ में आपकी क्या कहूँ
ये गगन आप हैं तो ये थल आप हैं
फ़िक़्र मुझको नहीं ज़िन्दगी में कोई
मुश्किलें हैं तो क्या उनका हल आप हैं
बिन कहे मुझको सब मिल गया ‘अर्चना’
मेरे कर्मों का अर्जित सुफल आप हैं
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