मेरी प्रेम गाथा भाग 5
मेरी प्रेम गाथा भाग 5
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मेरा हर दिन इसी तरह की दिनचर्या में से होकर गुजरता था। जन्माष्टमी का पर्व आने वाला था जिसे हम हम लोग बहुत धूम धम से मनाते थे और कृष्ण राधा लीला की प्रदर्शनी स्वरूप झांकियां भी लगाते थे । इस दिन कुछ वर्ती तो कुछ चर्ती रहती थे और जो चर्ती होते थे वो वर्तियों और चर्तियों दोनों का माल खा जाते थे।अब की बार जन्माष्टमी में प्रियांशु को प्रदर्शनी में कृष्ण जी का रोल दिया गया क्योंकि उसकी पर्सनैलिटी अच्छी थी। जब मुझे ये पता चला तो मैंने दोस्तों की सहायता से एक कैमरा का भी इंतजाम कर लिया था जिससे प्रियांशु का छायाचित्र ले सकू ।इस दौरान मैं एनसीसी कैडेट्स की ट्रेनिंग भी कर रहा था और कैंपिंग भी कर चुका था।केवल परीक्षा शेष थी जो इसी दौरान पड़ती थी।और …मैने प्रियांशु के लिए एनसीसी परीक्षा का परित्याग कर दिया था और जन्माष्टमी पर्व का पूरा आनन्द लिया। कार्यक्रम की किसी विद्यार्थी को किसी की फोटो लेने की आज्ञा नहीं होती थी लेकिन मैंने अपने कैप्टन होने का फायदा उठा प्रियांशु को सुंदर तस्वीरों में कैद कर लिया था। अब तो प्रियांशु के प्रति प्यार में पड् मेरे पागलपन की सीमा असीमित हो रही थी।प्रत्येक विषय वस्तु में वही नजर आती थी।यार दोस्तों ने भी मुझे त्रिपाठी जी कहना शुरू कर दिया था।उसको पाने का हर प्रयास मेरा विफल होने पर मैने आध्यात्मिकता का सहारा लिया और श्री राम सेवक हनुमान का उपासना होने के नाते अपने प्यार को पाने हेतु हर मंगलवार को उपवास रखना शुरू खर दिया,क्योंकि मेरी सारी मनोकामनाएं श्रीहनुमानजी पूरी कर दिया कर देते थे। बस मुझे प्रियांशु चाहिए थु किसी भी कीमत पर…..।इस संदर्भ में मैंने नवरात्रों पर भी उपवास रखने शुरू कर दिए थे।मरता क्या नही करता।
अब तो ऐसा लगने लगा था मानो मेरा सर्वस्व वही हैं। मेरी पढाई भी प्रभावित होने लगी थी और मनोदशा भी..।जिस दिन वो कक्षा में नहीं आती थी ,अनामिका से उसका हाल चाल जानकर बहाना बनि मैं ही वापिस होस्टल चला जाता था।प्रेम रोग गंभीर होता है, जिसकी समय के अतिरिक्त कोई दवा नहीं है। बीते दो सालों में उसे दिल की बात नहीं बता पाया था। मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि वो मुझे किस नजरिए से देखती थी।दोस्त जरूर शायद मुझे ढांढस बढता हेतु कह देते थे कि वो तुझे प्रेममयी नजरों से देखती हैं।।सचमुच एकतरफा प्यार बहुत कष्टदायी होता है, इसका दर्द क्या होता है, मुझ से बेहतर कौन जान सकता है।सफल प्रेमी जोड़ियों को देख मुझे जलन होती थी और मुझे प्रोत्साहित करते हुए कहते थे कि जल्दी से उसके समक्ष अपना प्रेय प्रस्ताव प्रस्तुत कर दो,लेकिन मेरे मन अंदर यह डर था कि कहीं वह मना ना कर दे।नवोदय में कड़ा अनुशासन होने के कारण प्रेम प्रस्ताव प्रस्तुत करने से पूर्व सौ बार सोचना पड़ता था,क्योंकि विद्यालय से निष्कासन का जोखिम था। काफु विचार विमर्श के बाद जोखिम उठाने का फैसला ले लिया और योजना पर काम शुरू हो गया। सुपरविजन स्टडी के बाद वाला समय निर्धारित हुआ क्योंकि उस समय स्कूल बिल्डिंग खाली हो जाती थीओर सारे विद्यार्थी रूम पर आ जाते थे और झाडू की ड्यूटी वाले ही रुकते थे ,जिनकी प्रतिदिन हर एक की ग्रुप वाइस ड्यूटी लगती थी । यह पता लगाया गयाकि प्रियांशी की कक्षा में झाड़ू लगाने की ड्यूटी कब है। अब मेरे पास इस संबंधी सारी जानकारी उपलब्ध थी। फिर एक शाम सुपरविजन के बाद मै अपने दोस्त को भी साथ ले गया और उसे प्रिंसिपल सर के चैंबर के सामने पहरेदार के रूप में तैनात खर दिया ताकि कोई आए तो वह मुझे बता सके। उसके बाद मैं परी की कक्षा में गया और उसकी साथी लड़की निशा को बोला कि वह प्रियांशु को दो मिनट के लिए बुलाए। यह कहते समय मेरा दिल तेजी से हांफ रहा थि और टांगे भय से कांप रही थी…।निशा ने प्रियांशु को कहा कि उसे अनामिका के भैया बुला रहे हैं। परी को बुला दो तो एक लड़की ने बोला अनामिका के भईया बुला रहे हैं।प्रियांशु यस सुन भयभीत और सहमु हुई सु बाहर निकली और बाहर आकर मेरे सामने एक सुंदर भोली सी देवी की मूर्ति भांति खड़ी हो गई।….मैं एकदम निशब्द थि….सच कहूँ तो मेरी फट रही थी । मेरी नज़रे उसकी नजरों से मिली ।मुझे ऐसेलगा जैसे उसकी प्यारी प्यारी बोलती हुई गहरी आंखे कुछ कह रही थी। कुछ विलंब के बाद उसने मुझ से कुछ कांपती धीमी आवाज में कहा लेकिन घबराहट के कारण मुझे कुछ भी नहीं सुनाई दिया क्योंकि उस समय मेरी नजर उसके होंठो पर थी और चेहरे के अनुसार चसके गुलाबी होंठों का आकर बहुत छोटा था, बिल्कुल एक क्यूट बेबी की तरह ।उसको देखकर मुझे बहुत ज्यादा घबराहट और दिल के अंदर तेज कंपन…..। और मेरा मन कर रहा था कि उसे गले से लगा कर जी भर कर रो लूँ और दिल की सारी बातें बता दूँ कि मै उसे कितना और किस हद तक प्यार करता हूँ और उसकज बिना जी नहीं सकता। ममेरु स्थिति को भंग करते हुए उसने कहा कि जल्दी बताइए क्या काम है..? मैने सब कुछ सोच रखा था कि कैसे ,किस प्रकार और क्या बोलना है, पर उसे देखने के बाद सब कुछ गायब हो गया। लग रहा था कि आज दुनिया का सबसे बड़ा काम करने जा रहा हूँ,पर एकदम मेरी हालत खराब हो रही थी और तनबदन बुरी तरह कांप रहा था।मैने दोनों हाथो को आपस में जोड़ रखा था जैसे भगवान के पास खड़े हो कर नतमस्तक कुछ माँग रहा हो ।मेरी उस समय की हालत प्रियांशु मुझसे बेहतर जानती होगी। फिर हिम्मत जुटाकर डरते डरते लड़खड़ाती जुबान से मैंने बोलना शुरू किया जो कि एकदम साफ़ साफ कुछ नहीं बोल पा रहा था और मतलब …मतलब …कि…मतलब बार बार लगा कर कुछ बताने की कोशिश कर रहा था कि प्रियांशु……मैं….मै…..तुम से कुछ कहना चाहता हूँ… है प्लीज ….बुरा मत मानना …..मतलब …सिर्फ मै ऐसे पूछ रहा हूं ….., प्लीज़ …बुरा मत मानना …मुझे बहुत डर लग रहा है… देखो …मैं एकदम कांप भी रहा हूं…. प्लीज़… बुरा मत मानना …वो.. मै तुमसे बहुत प्यार करता हूंँ…बहुत बहुत..और ..रोने लगा जैसे प्यार की भीख माँग रहा हूँ…. लेकिन कोई बात नहीं..।। तुम परेशान ना हो…. प्लीज़…., बस बता दो….. कि…तुम मुझे ….प्यार करती हो …कि ….नहीं …मै तुम्हे कभी भी…परेशान नहीं करूंगा ……कभी नजर उठा के….. देखूंगा भी नहीं… प्लीज़………..। मैंने उसे बोलने का मौका ही नहीं दिया।… अब उसके गुलाबी होंठ सूख चुके थे…. ऐसे लग रही था ..जैसे किसी सोच में पड़ गई हो …और जैसे ही प्रियांशु ने बोलना शुरू किया… बोलते समय वह आँखें नहीं मिलि पा रही थी….और आँखे छोटी होती जा रही थु और चेहरा पीला…। परी ने कहा ….ऐसी बात नहीं है… मुझे इन सब चीजों से बहुत डर लगता है ……मेरे पापा जान गए तो मुझे मार डालेंगे …और ….मुझे नहीं करना ये सब प्यार व्यार….मुझे जाने दीजिए…। उसने कुछ नहीं बोला …और…वह रोंते हुए…हॉस्टल चली गई…. ।.मैं स्थिति दयनीय हो गई थी…चेहरा पसीने से लथ पथ……निर्जीव बुत समान सा…।..मै भी पूरी तरह टूट कर निराशा हो कर ..दोस्तो के संग हाउस चला गया। अब दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था।ना ही भूख लग रही थी और ना प्यास..। मन भयभीत था कि अब क्या होगा …कहीं प्रियांशु ने…..अनामी…सर.को…।कुछ… कह…शिकायत……दिया तो …..।क्या सोचाथा और क्या हो गया था….परिणाम एखदम विपरीत….।काम ही नहीं कर रहा था कि क्या सोचा और क्या हो गया। सारी रात नींद नहीं आई…करवटें बदलता रहा।
सुबह मुझे मेरी बहन अनामिका मिली और बोली ..आपने प्रियांशु को कुछ क्या बोला था। वो तो तब से हॉस्टल में रो रही थी ।मैंने कहा कुछ भी तो नहीं कहा।अनामिका ने यह खहते हूए कि आगे से उसे कुछ मत कहिए और फिर मेरे द्वारा दियि सुनहरी पैन मुझे वापिस कर दिया जो मैंने प्रियांशु को जन्मदिन पर दिया था।उस समय मेरे लिए बस यही अच्छा रहा कि मामला वहीं रुक गया और मै निष्कासन और सजा से बच गया।
उसके बाद मैंने कुछ दिन परी को फॉलो करना और उसे देखना बंद कर दिया और मेरी दिनचर्या बदल गया।हीरो से जीरो जो बन गया था।वार्षिक परीक्षाओं के दिन थे और मेरा पढाई में मन नहीं लग रहा था। कुछ दिन बीत गए। और अब मै जब भी उसे कभी देखता तो वो मुझे देख रही होती थी और जब नजर मिल जाती थी तो मैं सोचता कि वह मेरी ओर देख रहीहै या मेरि भ्रम।अब मुझे ये नहीं पता कि प्रियांशु मुझे किस कोण से देखती थी लेकिन मैं सोचा करता कि आख़िर वो मुझे देखती क्यों है और मैंनें फिर से उसे फॉलो करना शुरू कर दिया। प्रेम का कीड़ि चैन से बैठने नहीं देता। अब मै परी को देखता जरूर था लेकिन चोरी चोरी …चुपके चुपके..। क्योंकि जब मैंने प्रपोज किया तो वो रोने लगी थी और जो मुझे बहुत बुरा लगा था ,क्योंकि मै नहीं चाहता था कि मेरी वजह से कोई ना रोए।उस दिन से मैंने परी को कभी कुछ नहीं कहा ।लेकिन उसके साथ उसके इर्द गिर्द रहने वाले उसके सारे दोस्त…वो सभी मेरे अपने लगते।मैं उन सभी से बहुत प्यार से बाते करता और उनकी सहायतार्थ तत्पर रहता । इस तरह उसकी हर एक फ्रेंडस की नजरों में मै अच्छा बन चुका था। इसी तरह उसकी एक दोस्त,क्लास मेट प्रिया जो प्रियांशु के साथ कक्षा में आती और जाती थी,उससे मेरी बाते हो जाती था और प्रिया का रूम मेरे हॉस्टल के ठीक पीछे था।प्रिया के पापा हमारे मैस प्रभारी थे।मुझे पता था ये काम आएगी। अब प्रिया से कभी कभी मेरी बाते भी हो जाती थी।एक दिन प्रिया ने बोला भईया मेरा बर्थडे है और आप शाम को अाइएगा ।मै बोला ठीक है। मैं शाम को प्रिया के घर गया और प्रिया ने मुझे मिठाई और केक खिलाया। मैंने भी जन्मदिन की बधाइयां दी। इसी तरह प्रिया के घर वाले भी मुझे अच्छा मानने लगे। प्रिया के पापा मेस इनचार्ज थे और मै हाउस कैप्टन था तो पहले से ही प्रिया के पापा जानते थे और अब जान गए थे। इसी तरह सिलसिला चलता रहा और जब कभी हाउस की तरफ प्रिया मिल जाती तो पूछ लेता और प्रिया कैसी हो और आपकी फेंड्स कैसी है तो वो बोलती ठीक है भईया। प्रिया को ये बात अच्छे से पता थी कि मै उसकी फ्रेंड्स प्रियांशु को लप्यार करता हूंँ इस तरह उससे भी मेरी जान पहचान अच्छी तरह हो गई थी।
हॉस्टल में खाना कितना भी अच्छा क्यों ना हो पर शनिवार को रात में हॉस्टल में मैगी जरूर बनती थी। हॉस्टल में कुछ बनाने कि परमिशन नहीं होती थी ।फिर भी चोरी छिपे हम लोग मैग्गी बनाते थे और डिनर टाइम मेस से रोटियां चुरा कर लाते और मैग्गी रोटी खाते थे बहुत मज़ा आता था। इसी तरह एक दिन मेरी बहन अनामिका बोली भईया हमें मैगी खानु है और मैंने कहा ठीक है,तैयार रहना शाम को दे दूंगा बना कर ।मैंनैकहा आप प्रियांशु को जरूर खिलाइए।और सुनते ही हँस पड़ी और कहा भेया तुम भी ना….। फिर शाम को मै मैगी बनाता और हॉस्टल भिजवा देता ।अनामिका के साथ उसकी फ्रेंड्स और प्रियांशु भी मैगी खाती और सुबह तारीफ सुनने को मिलती की मैगी अच्छी और स्वादिष्ट थी। इसी तरह मैंने बहुत बार मैगी भिजवाई ।जब कभी लेट हो जाता तो प्रिया के घर जाता और मैगी देता और प्रिया ले जाकर बहन को दे आती थी। इसी तरह मेरी नौंवी और प्रियांशु की सातवीं समाप्त हुई।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)