मेरी दोस्ती मेरा प्यार
मेरी दोस्ती मेरा प्यार
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“जब दीप जले चले आना” अंकिता के ये शब्द आज भी वैभव के कानों में गूंज रहे है और उसका चमकता चेहरा उसकी आंखो के सामने आ जाता है पर वह बेचारा क्या करे।वह उससे बहुत दूर जा चुकी है,शायद सात समंदर पार। वह शायद उससे कभी भी न मिल सकेगा। अंकिता , वैभव की सहपाठी और दोस्त भी थी। दोनो ही पास के स्कूल में पढ़ते थे। अंकिता एक गरीब घर से संबंधित थी और जाति से हरिजन थी। इसके पिता खेतो में मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालता था। जबकि वैभव एक धनाढ्य सेठ का लड़का था और वैश्य जाति से संबंधित था।
जब ये तीसरी कक्षा में पढ़ते थे तब से ही उनकी दोस्ती हो गई थी। वैभव की मम्मी वैभव को दो आलू के परांठे व सब्जी उसके लंचबॉक्स में रखती थी जबकि अंकिता बेचारी गरीबी के कारण एक रोटी अचार के साथ लाती थी कभी कभी तो वह अचार भी नही ला पाती थी केवल एक सूखी रोटी ही लाती थी। वैभव और अंकिता लंच टाइम में दोनो एक साथ मिलकर खाना खाते थे। वैभव उसे अपना एक आलू का परांठा और सब्जी दे दिया करता था। अंकिता पढ़ने में काफी होशियार थी पर वैभव अंकिता की अपेक्षा कम होशियार था। अंकिता हर क्लास में फर्स्ट आती थी जबकि वैभव तीसरे या चौथे नंबर पर ही रह जाता था।
समय बीतता गया और दोनो ने इंटरमीडिएट फर्स्ट डिवीजन में पास किया। अंकिता को कविता लिखने का और वैभव को चित्रकारी का शोक था ।इंटरमीडिएट की जब फेयरवेल पार्टी हो रही थी, तब वैभव ने अंकिता का छाया चित्र बनाकर और उसे फ्रेम में जड़वा कर उसे भेट किया था और अंकिता ने उसे एक कविता लिखकर भेट की थी। कविता के बोल थे “जब दीप जले चले आना,जब याद मेरी आए घर चले आना”।
इंटरमीडिएट करने के पश्चात वैभव ने बी एस सी में एडमिशन ले लिया पर अंकिता आगे किसी क्लास में एडमिशन न ले सकी चूंकि अंकिता के पिता की आमदनी इतनी नही थी कि वह अंकिता को आगे पढ़ा सके। जब यह बात वैभव को पता चली तो वह बहुत उदास रहने लगा और उसका पढ़ाई में भी मन नही लग रहा था। उसका खाने का भी बहुत कम मन करने लगा। वह दिन प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा था। वैभव की मम्मी वैभव की यह हालत देखकर काफी दुखी होने लगी। वैभव की यह हालत देखकर वह वैभव से एक दिन बोली,” क्यो रे क्या बात है तू बड़ा ही उदास रहने लगा है,कुछ खाता पीता भी नही है और दिन प्रतिदिन कमजोर भी होता जा रहा है क्या कारण है सच सच बता ,अपनी मम्मी से कुछ मत छिपा, मैं तेरी सारी इच्छाये पूरी कर दूंगी।”
मम्मी की बात सुनकर वैभवके चेहरे पर कुछ रौनक सी आई,वह अपनी मम्मी से बोला,”पहले आप मेरी कसम खाओ कि तुम मेरी बात मान लेगी।” मम्मी बोली,”तेरे से ज्यादा इस परिवार में कौन है तू मेरी इकलौती संतान है, मै तेरी हर इच्छा पूरी कर दूंगी “। वैभव बोला,”मेरे सिर पर हाथ रख कर कहो, कि मैं तेरी सारी
इच्छा पूरी कर दूंगी।” मम्मी ने वैभव को अपने सीने से लगा लिया,और उसके सिर पर हाथ रखकर बोली ,”बोल,बता तू क्या चाहता है।”
वैभव बोला,” आप तो जानती है कि जो अंकिता मेरे साथ पढ़ती थी वह अब आगे नहीं पढ़ सकती क्योंकि उसके पापा केवल मजदूरी करके बड़ी मुश्किल से अपने परिवार का पालन करते है वह अंकिता को आगे नहीं पढ़ा सकते और उसकी पढ़ाई का खर्च भी नही उठा सकते। मै चाहता हूं कि वह आगे पढ़े या किसी कंपीटिशन की तैयारी करे ताकि वह भी कुछ कमा सके और अपने पैरो पर खड़ी हो सके और उसे किसी का मुंह न ताकना पड़े। मुझे दस हजार रूपए चाहिए ताकि मै उसे एडमिशन दिला सकूं या वह किसी कंपटीशन की तैयारी कर सके तथा किताबे आदि खरीद सके।”मम्मी बोली,” अच्छा तेरे पापा से कहती हूं। वे तुझे दस हजार रुपए दे देंगे।” वैभव झट से बोला,” ना ना, पापा जी मत कहना,वे झट से मना कर देंगे।” मम्मी बोली,” अच्छा मै तुझे दस हजार रुपए दे देती हूं पर ये बात किसी को मत बताना और चुपके से अंकिता को दे देना और अपने पापा को भी मत बताना।”
अगले दिन वैभव अंकिता के घर पहुंचा और उसको आवाज दी।आवाज सुनकर अंकिता की मम्मी घर से बाहर निकल कर आई और बोली,” क्यो रे वैभव, बहुत दिनों बाद दिखाई दिया । क्या तूने अंकिता को तू आवाज दी । क्या तू उससे मिलना चाहता है या उससे कुछ कहना चाहता है।” वैभव अंकिता की मम्मी से बोला,” आंटी जी,मै अंकिता से मिलना चाहता हूं और उसे को आगे पढ़ाना चाहता हूं और किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन दिलाना चाहता हूं और इसलिए दस हजार रूपए भी अपनी मम्मी से लेकर आया हूं।” अंकिता की मम्मी यह बात सुनकर भौचक्की सी रह गई और उसको अपने घर के अंदर ले गई और उसे पानी पिलाया और पूछा घर में तो सब कुशल मंगल है ?” इतने में अंकिता भी उसके पास आ गई और वैभव से बोली,”क्यो वैभव तुमने बी एस सी में एडमिशन ले लिया।” मै भी आगे पढ़ना चाहती हूं और किसी कॉमिटिशन में बैठना चाहती हूं ताकि मुझे अच्छा सा जॉब मिल सके और अपने पैरो पर खड़ी हो सकूं। पर तुझे पता है कि मेरे पिता एक मजदूर है और मुझे आगे पढ़ाने में बिल्कुल असमर्थ है” वैभव बोला,”तू फिकर क्यो करती है, मै तो हूं।मैने अपनी मम्मी से दस हजार रुपए लिए है जो तेरे एडमिशन के लिए है और तू किसी कॉमिटिशन की भी तैयारी कर सके। अगर इससे ज्यादा रुपयों की आवश्यकता पड़ी, उसका भी मैं किसी न किसी प्रकार प्रबंध कर लूगा । तू जरा भी फिकर न कर।” अंकिता बोली,”ठीक है,जब मुझे पढ़ने के बाद अच्छी सा जॉब मिल जायेगा तब ये रुपए मै तुझे लौटा दूंगी।” वैभव बोला,” पगली मैं तुझसे सच्ची दोस्ती रखता हूं और सच्चा प्यार भी। मुझे तेरी कविता की वे पंक्तियां ,”जब दीप जले,घर आ जाना” आज भी याद है। आज मै तेरे घर विद्या का दीप जलाने आया हूं जिसकी रोशनी में तू आगे बढ़ सके।” यह सुनकर अंकिता के आंखों में आसूं आ गए और वह वैभव के गले लग गई।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम