मेरी दादी
मेरी मां मेरे बच्चों की दादी
कुछ इस तरह बतियाती
पुराने जमाने का आइना
बच्चों के लिए एक झूला,
अपने बुढापे को छुपाकर
अपने बचपन परवरिश के
दस्तावेज दिखाया करती हैं
बचपन के किस्से बचपन देख
जवानी पर थे अज़ब पहरे
रिश्ते नाते थे बहुत गहरे
दिन में जैसे सूरज के सहारे
रात में जैसे खिले हो चांद तारे
संबंध थे बहुत न्यारे प्यारे.
भाई खुद की जान से प्यारे
कमेरा परिवार पूरी खेती
पशुपालन छांद में बात्ती
बगल में पल्ल़ड़ वा दराती
हाथ में रोटी खाते जाती
सवा मठ की पूरी वो पाती
दोघड़ लेकर हो चौडी छाती
आये एक दिन सवा सौ बराती.
मुश्किल ही पार पड़ पाती,
गांव वाले बने बड़े हिमाती,
झूठ नहीं थी, फरेब अलबाती,
जोड़ी ऐसी दीया और बात्ती.
मेरी मां बच्चों की लगती दादी