मेरी डायरी (भाग-5)- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
मेरी प्रिय डायरी (भाग-5) (मेरा खेल जीवन)
-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’, टीकमगढ़ (मप्र)
दिनांक 28-5-2021 समय रात 10:30
मेरी प्रिय डायरी,
आत्मिक स्नेह
चलिए आज हम आपको अपने खेल जीवन के बारे में कुछ रोचक जानकारी देते है। कक्षा आठवीं से मैंने स्कूल में खेलना सीखा मेरे प्रमुख खेल बैंडमिंटन, बास्केटबॉल टेविल टेनिस और क्रिकेट रहे है थोड़ी बहुत फुटबॉल भी खेली है। लेकिन एक दिलचस्प बात बताये कै मेरे पिताजी ने मेरा नाम राजीव एक हाकी खिलाड़ी को देखकर रखा था क्या है कि टीकमगढ़ में अखिल भारतीय श्री वीर सिंह जू देव हाकी टूर्नामेंट हर साल होता है। उसमें अनेक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भी आते हैं। सन् 1972 में जब टूर्नामेंट हुआ तो एक हाकी खिलाड़ी राजीव कुमार आये थे उन्होंने ने बहुत बढ़िया खेल दिखाया था उसी से प्रभावित होकर पापा जी ने मेरा नाम भी राजीव रख दिया था जबकि मेरी राशि का नाम हरि शंकर है।
और सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि मैंने जीवन में कभी हाकी नहीं खेली है। हां लेकिन एक बात जरूर है कि हथ साल हाकी टूर्नामेंट देखने जरूर जाता हूं सेमीफाइनल और फाइनल तो अभी नहीं चूकता हूं।
खैर स्कूल के मैदान में हर रविवार का पूरा दिन क्रिकेट के नाम रहता था मैं बैटिंग तो राइट हैंड से करता था लेकिन बालिग लेफ्ट हाथ से करता था। मैं उस समय तामिया तहसील जिला छिंदबाडा में एक बेहतरीन लेग स्पिनर था।
सुबह 6 बजे से 8 बजे एवं शाम को 4:30से 6बजे तक बास्केटबॉल प्रतिदिन खेला करता था। हम लोग बहुत बढ़िया बास्केटबॉल खेलते थे। उस समय सन् 1988 में जिला स्तरीय प्राइज मनी टूर्नामेंट दस हजार रुपए का होते थे हमारी टीम तहसील की थी और हमें जिला स्तर पर छिंदवाड़ा खेलने जाना पड़ता था। हम लोग केवल पहली वार ही फाइलन में हारे थे उसके बाद लगातार तीन बार हम लोगों ने फाइनल जीत कर दस दस हजार की राशि जीती थी पहले बार की राशि से हमें स्कूल के प्राचार्य और कोच द्वारा टेक सूट उपहार में मिले थे फिर दूसरी बार की राशि से मैदान जो कच्चा था उसे सीसी बना दिया गया है मैं टीम का तीन साल कक्षा 18,11,12 में कप्तान रहा। मैंने लेफ्ट हैंड से खेलते हुए कई बार सेंटर लाइन से बास्केट किये हैं। हमें दो कोच श्एक श्री साहू जी और एक चंडीगढ़ के सरदार जी सिखाते थे उनकी मेहनत औ हमारी प्रेक्टिस से मेरा जूनियर वर्ग में तीन वार संभागीय स्तरीय खेल एवं एक बार स्टेट लेविल तक हुआ था। हमने खूब बास्केटबॉल खेला।
इसी प्रकार से मैं बैडमिंटन भी बहुत बढ़िया खेलता था मैं बायें हाथ से खेलता था और शोर्ट इतनी जोर से मारता था कि सामने वाले को रिटर्न करने का मौका ही नहीं मिल पाता था। बैडमिंटन में भी मैं दो बार संभाग स्तर तक खेल आया हूं। होंशगाबाद में संभागीय खेल होता था। मैं दो बार खेलने गया किन्तु हार गया कारण यह भी था कि तामिया में जहां मैं ं प्रैक्टिस करता था वहां इनडोर मैदान नहीं था। मुझे आउटडोर प्रैक्टिस करना पडती थी लेकिन जब जिला स्तरीय एवं संभाग में खेलने गया तो वहां मैच इनडोर स्टेडियम में हुए। बैडमिंटन में इनडोर और आउटडोर खेलने में बहुत अंतर होता है। यही वजह थी कि मैं बाहर हार जाता था। लेकिन उस समय ओपन टूर्नामेंट होते थे उसमें अनेक बार सिंगल्स जीता हूं डबल्स में भी मैं पीछे खेलता था और जब भी शटल थोड़ी ऊंची दिखी तुंरत साथी को छोड़ दें बोलकर एक जोरदार शोट मार देता था। यदि सामने वाले ने धोखे से सही रिटर्न कर दिया तो फिर दूगनी गति से फिर शोट मारता था कि सामने वाला देखता ही रह जाता था।
एक बार जब मै टीकमगढ़ आया तो मैं शुरू में सिविल लाइंस में एक जैन के मकान में किराए से रहता था वहीं पास में बैडमिंटन का मैदान बनाकर हम लोग रोज रात में खेलते थे। एक दिन मेरे साथ खेलने वाले एक के कालेज के कुछ मित्र उससे मिलने आये तो उस समय मेरे 12 और उसके 2 प्वाइंट बने थे ये देखकर उसके मित्र उसे चिढ़ाने लगे तो उसने भी गुस्से में कह दिया तुम एक ही प्वाइंट बना लो तो मान जिय, उन्हीं मेसे एक जो अच्छा खेलता होगा वह बोला मैं खेलता हूं और उसने रैकेट हाथ में ले लिया। तब वह पडौसी मेरे पास आकर कान में बोला भाई साहब हमारी कसम है इसके एक भी प्वाइंट नहीं बनने देना। सौभाग्य से मैंने उसके एक भी प्वांइंट नहीं बनने दिया वह 15:0 से हार गया तो बोला भाई साहब माफ करना मैंने आपको यहां पहली बार देखा है आप यहां के नहीं है। मैंने कहा मैं छिंदवाड़ा से आया हूं। अब जब कभी वह मुझे बाज़ार में मिलता है तो शर्म से मुंह झुका लेता है । टेबिल टेनिस मैंने कालेज में खेली लेकिन उचित माहौल नहीं मिलने और समय नहीं मिलने के कारण इसमें आगे नहीं बढ़ पाया।
मेरे पास बैडमिंटन और बास्केटबॉल के प्रमाण पत्र अभी तक सुरक्षित रखे है। लेकिन अब तो सब खेल छूट गया है।
तो ये तो था मेरे खेल जीवन की कुछ झलकियां।
शेष फिर कभी। आज बस इतना ही।
शुभरात्रि, स्वस्थ रहे, मस्त रहे।
आपका अपना-
-राजीव नामदेव _राना लिधौरी’
संपादक-‘आकांक्षा’ पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़
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