मेरी जानां
शर्माती हुई जब वो बगल से चली जाती है,
झिझक से मेरी जान निकल सी जाती है!!
तेरा यूं शर्माना हमें जगाता रह गया शब भर,
नज़रे मिलते ही ज़िंदगी जैसे थम सी जाती है!!
कयामत की खुबसूरत बलाओं सी वो सुरोश हो तुम,
नौनिहाले चमन में चिलमन जैसे बिखर सी जाती है!!
रास आती है दिल बहलाने की ये नई सी तफ़्तीश,
बड़े तपाक के साथ मेरी जानां मिल सी जाती है!!
ऐ गुलबदन! प्यार से गुजर जाओ यूं मेरी ज़िंदगी से,
अर्जे-मतलब से जिंदगी की कहानी बदल सी जाती है!!
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”