मेरी खामोशी का
मेरी ख़ामोशि का और अब इम्तिहान ना लें
सब कुछ लें लो मेरा ,मगर मेरी जान ना लों
तुम किसी प्यार के काबिल नहीं हो,जो कोई तुझपे अपना दिल-ए-जान निसार करें
तुम तो नफरत के जीती-जागती एक खुली खिताब हो, कैसे कोई तुझपे भला ऐतवार करें
ये खिताब चाहों तो तुम रख लो,मगर मेरी जान ना लों
सब कुछ ले लो मेरा,मगर मेरी जान ना लों
मेरी खामोशी का अब और तू इम्तिहान ना लों
करके मुहब्बत तुमसे भला क्या मिला मुझको
बदनामी का सरताज मिला मुझको
ये सरताज चाहों तो तुम रख लों,मगर मेरी जान ना लों
सब कुछ ले लो मेरा,मगर मेरी जान ना लों
मेरी ख़ामोशी का और अब इम्तिहान ना लों
सोचा नहीं था हमने कभी,इश्क में ऐसा धोखा खाएंगे
तेरी हाथों से एक रोज़ हम यूं गिरफ्तार हो जाएंगे।
अगर ये जीत हैं तेरी तो ,ये जीत का आलम तुम रख लों,मगर मेरी जान ना लों
मेरी ख़ामोशी का अब इम्तिहान ना लो
सब कुछ ले लों मेरा,मगर मेरी जान ना लों
कुछ ना कहूंगा, कुछ ना सुनूंगा,तेरा ज़िक्र कहीं ना करूंगा
बस ओ वक़्त,ओ आलम,ओ घड़ी मेरी/ हमें लौटा दों,मगर मेरी जान ना लों
मेरी खामोशी का अब और तू इम्तिहान ना लों
सब कुछ ले लों मेरा ,मगर मेरी जान ना लों
नितु साह
हुसेना बंगरा, सीवान-बिहार