मेरी कहानी जिसके किरदार में सिर्फ तुम
दुनिया में हर इंसान की एक कहानी होती है.जिनके किरदार में सिर्फ एक या इससे ज्यादा लोग शामिल होते हैं। इसी तरह मेरी भी एक कहानी है जिसके किरदार में सिर्फ तुम हो.. यानी जब मैं कहता हूँ “सिर्फ़ तुम” तो इनसे हमारी दुनिया पूरी तरह से सिमट सी जाती है। ये एक ऐसी दुनिया हो जाती है जिसमें मैं तुम्हारे साथ होना चाहता हूँ। ये दुनिया कुछ ऐसा होता है जिसमें एक खुशनुमा जिंदगी की बु आती है। जिसकी ख्वाहिश दुनिया के बेसतर लोगों को होती है। ऐसा जब मैं कह रहा हूं की “सिर्फ़ तुम” तो इनसे तुम दूसरों पर पूरी तरह हावी हो जाती हो.हमें लगता है शायद ऐसा नहीं कहना चाहिए दरसल सच तो ये है कि मैं तुम्हारे सिवा किसी के बारे में सोचना ही नही चाहता हूँ। लेकिन कितना अजीब हैं ना कि आज तक मैं तुम्हें ये भी नहीं बता सका हूँ कि हमारे ख्यालों में तुम्हारे सिवा किसी के लिए कोई भी जगह नहीं है. और इनसे भी अजीब सी बात ये है कि हमें लगता है मैं तुम्हें कभी बता भी नहीं पाऊँगा तुम मेरे लिए किया अहमियत रखती हो। मैं तुम्हें कितना चाहता हूँ। सच तो ये है कि जिंदगी में तेरे साथ सफर का साथ सिर्फ ख़्यालों तक ही रह जाने वाला है।
मैं कभी-कभी सोचता हूँ कि तुम्हें कह देना चाहिए कि मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूँ। लेकिन ना जाने क्यों मैं ऐसा करने से डरता हूँ। जब मैं इसके पीछे के कारण को ढूंढता हूँ तो कुछ भी नहीं मिलता है. सिवाए तुमको नहीं बताने के जिसमें वो कारण दिख जाते हैं आखिर क्यों नहीं बताना चाहिए। अक्सर ये मलाल होता है और पूरी जिन्दगी के लिए रहने वाला है कि ना मैं तुम्हें कह सका और ना ही तुम हमें समझ सके। मैं जब दूसरे साथियों को अपने जगह पर रखकर देखता हूँ.तो बड़ा अजीब सा लगता है कितना आसान है उनके लिए किसी से बता पाना कि मैं तुम्हें पसंद करता हूँ। जिसमें मैंने ज्यादातर को सफल होते हुए देखा है। जबकि मैं ऐसा चाहकर भी नहीं कर पा रहा हूँ। काश मैं ऐसा दूसरे साथियों जैसा ही कर पाता।
मैं ये अक्सर सोचता हूँ कितने खुशनसीब होंगे वो इंसान जिसके जिंदगी में तुम जाने वाली हो। जो तुम्हारा हमसफ़र होने वाला है। वही जब अपने बारे में सोचना शुरू करता हूँ तो खुद को बदनसीब पाता हूँ। जो पूरी जिंदगी में एक मलाल सा रह जायेगा काश तुम सिर्फ़ हमारे ख़यालों के दुनिया के लिए नहीं होती तो कितना अच्छा होता। हमारी दुनिया भी शायद उस खुशनसीब इंसान के तरह हो जाती जहां मोहब्बत,समझ और अपनापन होता है। जिससे जिंदगी पूरी तरह से खुशगवार हो जाती है। जहां नोकझोंक में भी प्यार होता और सबसे बड़ी बात उसके बाद मनाने और मानने का एक दौर भी होता है। हमें लगता है शायद इसे ही जिंदगी जीना कहते हैं। जिसमें सुख – दुःख झेलने की साझा जिम्मेदारी दिखती है। जहां रिश्ते में एक बॉन्डिंग का भरपूर एहसास होता है. कहीं इनसे ज्यादा इनको बरकरार रखने के दोनों के बीच समर्पण का भाव होता है। ये किसी एक तरफ से नहीं बल्कि दोनों तरफ से होता है। जो असल में जिंदगी क्या है? उसके सही मायनों में उनके अर्थों को बता जाते हैं।
जिंदगी के समर शेष में “सिर्फ़ तुम” रहोगी। ये बात अलग है कि ये दुनिया हमारे लिए सिर्फ खयालों तक ही सीमित रह जाने वाला है। काश कोई ऐसी तरकीब मिल जाती जिनसे तुम हमारे दिलों के हाल को समझ पाते। या कोई ऐसा नुस्खा दे जाता जिनसे मैं तुम्हें अपने दिल की बात कह पाता। जिनसे की जिंदगी को एक बेहतर सार्थक रूप से जिया जा सकता था। जिंदगी की समर शेष में सबसे बड़ा मलाल तुमको ना पाने का ही रहेगा।
काश तुम सिर्फ हमारे ख़्यालों की दुनिया के लिए नहीं होती।