मेरी कविता के दर्पण में,
मेरी कविता के दर्पण में,
जो कुछ है,
महज़ तेरी परछाई है
एक कोने में नाम मेरा,
लफ्ज़ लफ्ज़ में तू छाई है
तू पढ़ती है मेरी कविता,
मैं तेरा मुखड़ा पढ़ता हूँ…
देख झील सी आँखे तेरी
मैं अल्फाजों से
तुझ को गढ़ता हूँ
हिमांशु Kulshrestha