मेरी उम्मीद
हो जाता हूं दुनिया से विरक्त मैं
लगता है कभी, कुछ भी नहीं है
फिर तुम्हें देखता हूं तो लगता है
मेरे पास तो कोई कमी ही नहीं है
होती है घड़ी मुश्किल जब भी
सोचता हूं क्या करूंगा अब मैं
फिर तेरी निश्छल हसीं सामने आती है
जिसके लिए कुछ भी कर सकता हूं मैं
लोग जाने कहां कहां ढूंढते हैं
मुझे तो तुम में कान्हा नज़र आते हैं
जिसकी आस में जी रहे हैं हम सभी
देखकर तुम्हें ही हम वो सुकून पाते हैं
कुछ देर खेलकर साथ तुम्हारे
बच्चा बन जाता हूं मैं भी
देखकर तुम्हारी नटखट शरारतें
फिर बचपन जी लेता हूं मैं भी
काश ये समय रुक जाए अब
तू रहे ऐसे ही निडर और निश्छल
तू साथ है तो जीत जायेंगे हम
चाहे स्थिति हो कितनी भी विकल
तुमको देखना चाहता हूं मैं अब
जल्दी घर आ जाओ तुम खेलकर
बहुत देर हो गई, अंधेरा होने को है
गया तो था तू थोड़ी देर बोलकर।