मेरी अम्मा
मेरी अम्मा
कभी नहीं जताती कुछ थी,
मेरा दुःख सह जाती अम्मा।
हमें खिलाती बड़े प्यार से ,
खुद भूखे सो जाती अम्मा।
एक एक पाई रही जोड़ती,
मुझ पर थी लुटाती अम्मा।
दुनिया भर के दुख सहती,
और मुझे बचाती अम्मा।
खुशियाँ सारी मेरे लिए ही,
जाने कहाँ से लाती अम्मा।
भोली-भाली व प्यारी प्यारी,
सबसे थी सुन्दर मेरी अम्मा।
धरती सी थी सहने की क्षमता,
थी त्याग की मूरत मेरी अम्मा।
सारा प्यार लुटाती थी मुझपर,
सब कष्टों से थी बचाती अम्मा।
ईश्वर तो है मन्दिर की शोभा,
घर मन्दिर की है मेरी अम्मा।
सब कोई पूजे हैं देवी-देवता,
मैं तो हूँ पूजती अपनी अम्मा।
डॉ. सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली