मेरा मन तुम साथ ले गयी
हृदय पटल की स्मृतियों में, प्रिये! विन्यास तुम्हारा है।
मेरा मन तुम साथ ले गयी, मेरे पास तुम्हारा है।
मेरे मन की एक कल्पना,
तुम सर्वाधिक प्यारी हो।
माना बहुत मान है तुममें,
पर दिल मुझपर हारी हो।
चेतनता चिंतन श्वांसों में, प्रिये! बस न्यास तुम्हारा है।
मेरा मन तुम साथ ले गयी, मेरे पास तुम्हारा है।।१।।
दो नयनों के तीरों में तुम,
बहने वाला निर्झर हो।
अभिलाषाऐं प्यास बुझातीं,
तुम अतृप्ति का उत्तर हो।
विहग प्रीति के चहक उठे हैं, यह उल्लास तुम्हारा है।
मेरा मन तुम साथ ले गयी, मेरे पास तुम्हारा है।।२।।
जीवन पथ पर तमस बहुत है,
तुम उजास अंतर्मन में।
तुम उत्सव बनकर आयी हो,
जीवन के सूनेपन में।
चहल- पहल सी रहती मन में, इसमें वास तुम्हारा है।
मेरा मन तुम साथ ले गयी, मेरे पास तुम्हारा है।।३।।
छंद वदन धर गीत बनी तुम,
इन अधरों पर उतरी हो।
अंग अंग में अलंकार है,
रस गुण सी तुम सँवरी हो।
सप्त स्वरों रागों वाद्यों में, बस आभास तुम्हारा है।
मेरा मन तुम साथ ले गयी, मेरे पास तुम्हारा है।।४।।
सहज पुष्प का सुरभित होना,
सहज श्वास जाना आना।
आशातीत प्रयत्न बिना ही,
सहज प्रेम का हो जाना।
है संकोच प्रणय से कैसा, क्या उपवास तुम्हारा है?
मेरा मन तुम साथ ले गयी, मेरे पास तुम्हारा है।।५।।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ, सबलगढ़, जिला- मुरैना(म.प्र.)
पिनकोड- 476229
मो.- 9516113124