मेरा पहला प्यार
वह जो अधूरा ही रह गया
मेरा पहला प्यार था!
ना तो कोई तफ़रीह था
ना ही कोई खिलवाड़ था!
(१)
रोज़ शाम की तनहाई में
याद आता है रह-रहकर
कैसा मासुम-कैसा दिलकश
मेरे बचपन का यार था!
(२)
अपने नापाक हाथों से
निहायत ही बेरहमी से
दुनिया ने जिसे तोड़ा छिनके
मेरी बीना का तार था!
(३)
जब मुझे छोड़कर आहों में
वह गया ग़ैर की बाहों में
शहनाई की गूंज में उस रात
कितना हाहाकार था!
(A Dream of Love)
Shekhar Chandra Mitra